योग सूत्र में वर्णित अष्टांग योग का छठा अंग धारणा है जब साधक ध्यान करने लगता है तब साधक का मन व्यक्ति को इधर-उधर विचारों और कल्पनाओं में घुमाने लगता है तब महर्षि पतंजलि ने धारणा के द्वारा साधक को बताया कि आप कैसे अपने चंचल मन को धारणा के द्वारा अपने मन पर कंट्रोल कर सकते हैं और अपने चंचल मन पर विजय प्राप्त करके ध्यान में जाया जा सकता है धारणा क्या है इसका सही अर्थ आप समझेंगे तभी आप ध्यान में सफलता प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि योग साधना एक खतरनाक और जटिल योग है
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धारणा का सही अर्थ
चंचल मन को किसी एक स्थान या शरीर के किसी अंग पर मन को एकाग्रचित्त करके ध्यान बनाए रखना धारणा कहलाता है
अभी आपको धारणा का अर्थ समझ में नहीं आ रहा होगा चलिए इसको आपको मैं और भी आसान शब्दों में समझता हू । जब साधक यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, पालन करते हुए जब इंद्रियां वश में हो जाती हैं परन्तु मन अभी भी वश में नहीं आता है वह व्यक्ति को तरह-तरह के विचार दिखाता रहता है वह किसी एक स्थान पर टिकता ही नहीं है जिसके कारण व्यक्ति का चित्र एकाग्रचित चित्र नहीं हो पता जिसके कारण साधक ध्यान की गहराई में नहीं जा पाता है
धारणा यह कहता है कि इंद्रियों के वश में हो जाने के बाद साधक को अपने चंचल मन को किसी एक स्थान जैसे हृदय पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए मन बार-बार विचार उत्पन्न करेगा ध्यान से भटकाएगा लेकिन उन सभी विचारों पर ध्यान न देकर केवल हृदय पर ध्यान देते रहना अर्थात बनाए रखना ऐसा करने से कुछ देर में मन साधक को भटकाना बंद कर देता है और चित्त बिल्कुल शांत स्थिर हो जाता है और योगी ध्यान में आगे बढ़ता है
धारणा कैसे करें सही तरीका विधि जाने
धारणा तक पहुंचाना कोई कठिन कार्य नहीं है लेकिन धारणा को बनाए रखना उसे पर चलना कठिन है धारण कैसे करते हैं इसका सही तरीका जाने और इसे कैसे करना है समझे आप जितना अधिक इसे समझेंगे आप उतना ही अच्छे से इसे कर पाएंगे।
एक हवादार सुखासन या पद्मासन मुद्रा में किसी शुद्ध स्थान पर आसन लगाकर बैठ जाएं अपने रीड की हड्डी और गर्दन को सीधा रखें अपनी आंखें बंद कर ले
मुख्य बाते। ध्यान रहे कमर की रीड की हड्डी गर्दन सर झुके नहीं. झुक जाए पर उसे तुरंत आप सीधा कर ले नहीं तो ध्यान टूट सकता है
ऐसा करने पर साधक अपने आप को एक कमरे में बंद जैसा अनुभव करता है जहां पर उसे कुछ दिखाई नहीं देता है अब यहीं से पूरा खेल शुरू होगा अब अपने मन को हृदय की आवाज को सुनने में लगा देना है आपको जब तक सुनना है जब तक कि आपका मन तरह-तरह के विचार दिखाना बंद नहीं कर देता अर्थात जब आप अपनी आंखें बंद कर लेते हैं तब व्यक्ति का मन व्यक्ति को तरह-तरह के विचार कल्पनाएं में घुमाने लगता है कभी सुंदर-सुंदर अप्सराएं दिखने लगता है तो कभी जरूरी काम याद आने लगाते है मन ध्यान से उठने को बार-बार कहने लगता है और शरीर पर प्रेशर डालता है तुम यह सब क्या कर रहे हो अभी ध्यान से उठो इससे कुछ नहीं होगा . यह सब मन कहने लगता है
इन सभी भटकावों से बचने के लिए साधक को धारण की आवश्यकता होती है तब साधक को किसी एक स्थान पर मन को उन सभी विचारों से हटाकर हृदय पर लगाया जाता है जैसे एक विद्यार्थी पढ़ाई में ध्यान लगता है वैसे ही ध्यान में साधक अपने हृदय पर ध्यान लगता है और उसी के बारे में सोचता है धड़कन को सुनता है बाकी किसी चीज पर ध्यान नहीं देता है ऐसा करने से 2 घंटे बाद मन साधक को भटकाना बंद कर देता है और साधक एक ध्यान की उच्च गहराई में चला जाता है वहां पर जाकर कुछ करने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि साधक ध्यान की गहराई में जा चुका होता है अब केवल समाधि ही शेष रह जाती है
कैसे जाने की आप ध्यान की गहराई में जा चुके हैं
जब साधक ध्यान की गहराई में चला जाता है तब शरीर कंपन के साथ कांपते हुए वह पूरी तरह शांत वह स्थिर हो जाती है मन में विचार आने बंद हो जाते हैं जहां ध्यान में केवल शांति ही शांति होती है बाहर की आवाज़ आना बंद हो जाता है सर्दी गर्मी किसी भी मौसम का अनुभव नहीं होता है सब कुछ स्थिर हो जाता है शरीर के भीतर के सभी अंगों से आवाज सुनाई देने लगती है बाहर की आवाज सुनाई देना बंद हो जाता है और शरीर एक आनंद की अनुभूति करता है तब साधक ध्यान की गहराई में जा चुका होता है
अष्टांग योग क्या है: अर्थ, परिभाषा, लाभ, संपूर्ण ज्ञान
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