आत्मा और जीवात्मा क्या है इनमें अंतर क्या है अधिकतर लोग नहीं जानते हैं क्योंकि आत्मा परमात्मा का ज्ञान अधिकतर लोगों को पता ही नही है आत्मा और जीवात्मा की जानकारी हिंदू धर्म में कम ही देखने को मिलती है जिसके कारण लोगों को इसका ज्ञान नहीं होता है की आत्मा और जीवात्मा में अंतर क्या है और वे मर जाते हैं लेकिन उनको कभी भी पता नहीं चलता है मैं आपको बता दूं कि आत्मा और जीवात्मा को समझना थोड़ा मुश्किल है लेकिन कठिन नहीं है मैं आपको कुछ इस प्रकार बताऊंगा की आत्मा और जीवात्मा में क्या अंतर है आपको आसानी से समझ में आ जाएगा। इसे जानने से पहले आपको यह जानना चाहिए की आत्मा और जीवात्मा क्या है तब आपको आसानी से समझ में आ जाएगा आत्मा और जीवात्मा में क्या अंतर है
आत्मा और जीवात्मा क्या है
मनुष्य के शरीर के आकार पर उसे पांच कोश भागों में बांटा गया है जिसे अन्यमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश, आनंदमय कोश, है यह पांच कोष शरीर के आकार के होते हैं जैसे अन्यमय कोश को अपनी आंखों से हम देख सकते हैं व्यक्ति के बाहरी शरीर को अन्यमयकोष कहते है प्रणामय कोश को इन नन्ही आंखों से नहीं देखा जा सकता वह कोश वायु का बना होता है इसी प्रकार हर एक कोष के नीचे कोष छोटा होता जाता है अंत में जाकर आनंदमय कोश बचता है जिसे जीवात्मा कहते हैं और जीवात्मा के भीतर आत्मा का निवास होता है आनंदमय कोष शरीर का सबसे शुच्छम होता है जब शरीर की मृत्यु होती है तब आनंदमय कोश अर्थात जीवात्मा मनोमय कोष कोष को धारण करके शरीर से बाहर निकल जाता है
महत्त्वपूर्ण बाते। आप बचपन से सुनते आते होंगे कि परमात्मा व्यक्ति के शरीर में निवास करते हैं आपको हम बता दे कि परमात्मा शरीर के आनंदमय अर्थात जीवात्मा में निवास करते हैं जीवात्मा का अपना एक स्वरूप होता है और आत्मा परमात्मा का स्वरूप होता है जब जीव + आत्मा मिलते हैं तब उन्हें हम जीवात्मा कहते हैं जीव और आत्मा को कभी अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि जीव में आत्मा मिलने पर जीवात्मा का एक रूप बनता है
और ध्यान से समझे। जैसे एक रथ को चलाने वाला शरीर का मन होता है और जो उस रथ का स्वामी मालिक जिसे राजा कहते हैं वह जीवात्मा होता है जीवात्मा खुद से निर्णय ले सकता है विचार कर सकता है उसके इशारे पर मन कार्य करता है और शरीर चलता है व्यक्ति द्वारा जो भी पाप पुण्य होते हैं उसका दुख सुख जीवात्मा भोक्ता है इसीलिए जो भी मान अपमान होता है वे सब जीवात्मा को महसूस होते हैं परंतु आपको पता होना चाहिए कि
उस जीवात्मा रथ के स्वामी राजा के शरीर के भीतर आत्मा का निवास होता है जिसे परमात्मा कहते हैं जिसे साधारण लोग कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में परमात्मा निवास करते हैं वे परमात्मा इस जीवात्मा के शरीर के भीतर निवास करते हैं और परमात्मा का अपना स्वरूप होता है जिसे भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अर्जुन प्रत्येक व्यक्ति को योग द्वारा अपने शरीर के भीतर बैठे परमात्मा के दर्शन करना चाहिए जिससे व्यक्ति को मुक्ति मिल सके।
आत्मा और जीवात्मा में अंतर
आत्मा + जीव मिलकर जीवात्मा बनते हैं जीवात्मा एक शरीर के रूप का व्यक्ति है उस व्यक्ति के शरीर के भीतर आत्मा निवास करता है आपने सुना होगा कि लोगों को कहते हुए की व्यक्ति को किसी और की बात को नहीं सुनना चाहिए केवल अपने आत्मा की आवाज को सुनना चाहिए वे आत्मा की आवाज उसी जीवात्मा के शरीर के भीतर से आता है जिसे हम जीवात्मा कहते हैं प्रत्येक जीवात्मा के शरीर के भीतर आत्मा निवास करती है
जीव : जीव का अपना स्वरूप होता है जीव अपने से निर्णय ले सकता है आदेश दे सकता है कार्य कर सकता है दुख सुख को अनुभव कर सकता है पाप पुण्य जैसे कर्म कर सकता है
आत्म : आत्मा का अपना स्वरूप होता है यह आत्मा परमात्मा का एक अंश होता है आत्मा खुद से निर्णय ले सकता है जीव को आदेश दे सकता है जीवात्मा को कार्य करा सकता है और जीव के कार्यों को देखता है जीव के द्वारा किए गए कार्यों को देखता और आनंदित होता है जीवात्मा का मालिक आत्मा होता है प्रत्येक व्यक्ति को अपने आत्मा के आदेशों पर चलना चाहिए क्योंकि आत्मा की आवाज को परमात्मा की आवाज माना जाता है
प्रेत बाधा के लक्षण और संकेत। प्रेत बाधा दूर करने का उपाय
आत्मा क्या है?
आत्मा शरीर का चेतन स्वरूप शरीर मन बुद्धि इंद्रियों का स्वामी सुख-दुख को भोक्ता वह आत्मा है