महर्षि पतंजलि ने मानव के कल्याणके लिए योग सूत्र नामक पुस्तक कीरचना की जिसमें उन्होंने योग को आसान शब्दों मैं वर्णित किया जिसके द्वारा मनुष्य आसानी से इन योग विधिओ द्वारा समाधि को प्राप्त होकर परमात्मा से संपर्क करके आत्मज्ञान की प्राप्ति कर सके। और मोक्ष की प्राप्ति करे ।
जो मनुष्य योग मैं सफलता पाना चाहता है उसे इस अष्टांग योग विधि से आसानी से योग मैं सफलता प्राप्त कर सकता है । और आपकी योग मार्ग में आपकी हम सहायता करेंगे ।
योग मैं सफलता के लिए योग का संपूर्ण ज्ञान होना अति आवश्यक है बिना ज्ञान के योग में सफलता पाना असंभव है इस लिए आपको अष्टांग योग की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना होगा । अष्टांग योग की संपूर्ण जानकारी आप आगे पढ़ेंगे
- अष्टांग योग क्या है
- अष्टांग योग की परिभाषा
- अष्टांग योग कितने प्रकार के होते है
- अष्टांग योग के नियम
- अष्टांग योग के लाभ
- अष्टांग योग के सूत्र
- अष्टांग योग के संस्थापक हैं
अष्टांग योग क्या है
अष्टांग योग , अष्ट (आँठ) नियमों ,विधि से बना एक प्रक्रिया है जिसे अष्टांग योग के नाम से जाना जाता है जिसमे यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान , समाधि, इन आंठो नियम मिलकर अष्टांग योग कहे जाते है।
अष्टांग योग में साधक इन आँठो नियम पर चलकर समाधि लगाकर परमात्मा से मिलन कर मोक्ष प्राप्त कर लेता है यही कार्य अष्टांग योग करता है।
अष्टांग योग की परिभाषा
अष्टांग योग की परिभाषा: यम, नियम ,आसन ,प्राणायाम प्रत्याहार ,धारणा ,ध्यान, समाधि इनका अनुसरण करके शरीर के इंद्रियों और मन को वश में करके ध्यान की उस अवस्था में जाना जहां विचार आने बंद हो जाएं जहां संपूर्ण शांति और आनंद हो साधक का मन उसके जीव आत्मा को परमात्मा से संपर्क करा देता है उसके बाद व्यक्ति को संपूर्ण समाधि प्राप्त होता है और आत्म ज्ञान की प्राप्ति होती है उसे ही अष्टांग योग कहते है
अष्टांग योग कितने प्रकार के होते हैं
अष्टांग योग के प्रकार: अष्टांग योग मुख्य आठ भागों में बांटा गया है यम, नियम,आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा ध्यान, समाधि ।
इन आठों नियमों का एक ही काम है कि व्यक्ति के शरीर को शुद्ध निर्मल और अंतरमन को शुद्ध करना एकाग्रता में वृद्धि करना मन को भटकने से रोकना जब साधक का मन एक काम पर लग जाता है तब व्यक्ति का मन साधक के जीवात्मा को परमात्मा से संपर्क करा देता है अर्थात् परमात्मा की प्राप्ति होती है भगवत गीता में भगवान ने स्वयं कहा है जब व्यक्ति अपने मन को वश में कर लेता है तब वही मन व्यक्ति को मोक्ष की और ले जाता है अर्थात् परमात्मा से संपर्क करा देता है।
अष्टांग योग के लाभ
अष्टांग योग के मुख्य लाभ: अष्टांग योग का मुख्य उद्देश्य केवल साधक को एक जानवर से उठाकर एक मनुष्य बनाता है एक आम इंसान से उठाकर देव पुरुष बनाता है देव पुरुष बनने के बाद उसे और कुछ जानने समझने की कोई आवश्यकता नहीं होती तुमको इतना ज्ञान प्राप्त हो चुका होता है
की पूरे संसार तुम्हारे इतना ज्ञान और किसी के पास नही होता है क्योंकि साधक को आत्म ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी होती है और उसका मिलन परमात्मा से हो चुका होता है उसको जो ज्ञान प्राप्त हुआ होता है वह ज्ञान स्वम ईश्वर से प्राप्त होता है ईश्वर ने पूरे ब्रह्मांड को बनाया है उसके इतना ज्ञानी कोई इंसान भला कैसे हो सकता है जिसे मनुष्य को स्वम ज्ञान ईश्वर ने दिया हो उससे बड़ा ज्ञानी भला कौन होगा । यही अष्टांग योग का यह मुख्य लाभ है
- अष्टांग योग द्वारा मन को नियंत्रित किया जाता है
- अष्टांग योग द्वारा व्यक्ति परमात्मा को प्राप्त कर लेता है
- व्यक्ति को आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है
- व्यक्ति का जीवन आनंद में हो जाता है
- व्यक्ति को बीमारियां कभी भी नहीं होती व्यक्ति से बीमारियां हमेशा दूर भागते हैं
- अष्टांग योग से मानसिक शांति मिलती है
- अष्टांग योग से विचार आने बंद हो जाने और फिर साधक के अनुसार विचार आने सुरू होने लगते है
- अष्टांग योग से किसी काम को करने में सफलता जल्दी मिलती है
- अष्टांग योग से एकाग्रता शक्ति बढ़ता है
- सर्दी ,गर्मी ,वर्षा ,किसी भी प्रकार का मौसम हो सब मैं उनके लिए समान होता है
- चिंता डिप्रेशन से खत्म हो जाता है
- व्यक्ति का अपना जीवन आनंद पूर्वक जीवन जीने लगता है
- व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि और आनंद से अपना जीवन जीता है
अष्टांग योग के नियम
अष्टांग योग के नियम: अष्टांग योग को आठ भागों में बांटा गया है यम, नियम, आसान ,प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान ,समाधि, इन आंठो भागों का अलग-अलग नियम है कुछ इस प्रकार
यम: कुछ सामाजिक मुख्य नैतिक नियम है
अहिंसा : किसी को दुख नहीं देना जीव जंतु की हत्या नहीं करना किसी के बारे में भला बुरा नहीं बोलना ।
सत्य: 👉 जीवन में कभी असत्य नहीं बोलना सदा सत्य बोलना. अपना जीवन हमेशा सत्य की मार्ग पर चलना दूसरों को सत्य बोलना सीखना और हमेशा खुद सत्य रहना ।
अस्तेय: 👉 जीवन में कभी चोरी नहीं करना, किसी के बारे में गलत नहीं सोचना, किसी के बारे में बुरा नहीं करना।
ब्रह्मचर्य:👉 जीवन मैं ब्रह्मचर्य का पालन करना, हस्तमैथुन नहीं करना, वीर्य की रक्षा करना किसी के बारे में गलत नहीं सोचा।
अपरिग्रह:👉 मन में संतोष बनाना, भूख से अधिक नहीं खाना , आप जिस अवस्था में हैं उसे अवस्था में संतोष शांति बनाए रखना, किसी को पाने की लालसा नहीं रखना।
नियम: साधक को अपने दैनिक जीवन में इन नियम को अपनाना चाहिए कुछ इस प्रकार है
शौच: 👉 प्रतिदिन शरीर को स्वच्छ और साफ रखना चाहिए प्रतिदिन शौच स्नान करना चाहिए
संतोष:👉 जीवन में संतोष का होना अति आवश्यक है अन्यथा जीवन में कभी खुशी नहीं मिल सकती है व्यक्ति जिस अवस्था मैं है उसे उस अवस्था मैं आनंदित रहना चाहिए।
तप : 👉 मन को प्रसन्न रखना, चित्त में शान्ति रखना, मौन धारण करना, विषयों से मन को रोकना, अन्तःकरण को शुद्ध रखना, यह सब मानसिक तप है ॥
स्वाध्याय :👉 साधक को अपने ज्ञान को याद करते रहना चाहिए आत्मचिंतन करते रहना चाहिए। जिससे पढ़ा हुवा याद रहता है
ईश्वर प्राणिधान : 👉 व्यक्ति को अपने आप को ईश्वर को समर्पित करना , ईश्वर में श्रद्धा का होना, ईश्वर में विश्वास होना चाहिए।
आसान : एक सुख आसन मैं बैठने का प्रयास करें, साधक को जितना हो सके बिना किसी कष्ट के लंबे समय तक ध्यान में बैठे रहने का प्रयास करना चाहिए
प्राणायाम: साधक को प्रतिदिन प्राणायाम करना चाहिए जिससे शरीर में ऊर्जा का संचालन होता है शरीर ऊर्जावान बनता है साधक को लंबी आयु प्राप्त होती है ध्यान लगाने में कोई समस्या नहीं आती और शरीर हर प्रकार की बीमारियों से छूट जाता है दीमक शांत होता है।
प्रत्याहार: साधक को अपने इंद्रियों पर नियंत्रण करना चाहिए, इंद्रियों के भटकाव में नहीं आना चाहिए
धारणा : मन को एकाग्रचित करके किसी एक चीज पर ध्यान लगाना धारणा कहलाता है किसी एक विषय पर ध्यान बनाए रखना धारणा है
ध्यान : किसी एक स्थान पर अपने मन को नियंत्रण बनाए रखना। उसी के बारे में सोचना विचारना बाकी कोई विचार आने पर रोक देना केवल उसी पर ध्यान करते रहना ध्यान का नियम है
समाधि : किसी एक वस्तु पर नियंत्रण ध्यान करते रहने से मन काबू में आ जाता है और साधन ध्यान की गहरी अवस्था में चला जाता है और इंद्रिया और मन कंट्रोल में आ जाता है और साधक समाधि के गहरी अवस्था में चला जाता है उस अवस्था को समाधि की अवस्था बोला जाता है।
अष्टांग योग के सूत्र
अष्टांग योग के महर्षि पतंजलि ने 8 सूत्र बताए हैं यह इस प्रकार है यम ,नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार ,धारणा ,ध्यान ,समाधि जिसके द्वारा साधक अपने जीवात्मा को परमात्मा से संपर्क करता है और परमात्मा में लीन हो जाता है उसे अवस्था को समाधि की अवस्था कहते हैं
अष्टांग योग के संस्थापक हैं
योग को उजागर करने वाले महर्षि पतंजलि हैं जिन्होंने योग को आसान शब्दों में मनुष्य के लिए प्रदान किया और वे अष्टांग योग की स्थापना की इनके द्वारा बताए गए योगसूत्र द्वारा साधक आसानी से योग में सफलता प्राप्त कर लेता है।