यम क्या है अर्थ परिभाषा, नियम


योग में यम का एक महत्वपूर्ण रोल है लेकिन यम योग में कैसे सफलता दिलाता है पहले आप जानो यम के बिना योग में सफलता प्राप्त करना खतरनाक होता है इसी को रोकने के लिए यम साधक की सहायता करता है आगे आप यम की संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करेंगे 

  • यम क्या है 
  • अर्थ परिभाषा
  • क्यो यम का पालन करना जरूरी है
  • यम के लाभ क्या है 
  • यम के नियम
  • यम को ना करने के नुकसान 

यम क्या है 


यम अष्टांग योग की पहली सीढ़ी है यम के पांच नियम है जिस पर साधक चलकर ध्यान में सफलता प्राप्त करता है

अर्थ और परिभाषा

यम का अर्थ यम के पांच नियम है सत्य ,अहिंसा ,अस्तेय, ब्रह्मचर्य ,अपरिग्रह, इन पाचो नियमों का पालन करना यम  कहलाता है

क्यो यम का पालन करना जरूरी है।


भगवान मनुष्य को तीन गुण से सीचते हैं रजोगुण ,तमोगुण ,सत्यगुण, जिस व्यक्ति में जो गुण प्रधान होता है व्यक्ति वैसा बन जाता है

रजोगुण की प्रधानता होने पर : व्यक्ति राज्य पाठ इज्जत मान सम्मान की लालसा करता है और लोभी लालची प्रकार का बन जाता है दूसरों को नीचा दिखाना उसमें उसे मजा मिलता है हमेशा सुख की कामना करना अपना जीवन भोग विलास में बिताना जितना हो सके धन इकट्ठा करना उसके जीवन का मूल यही कर्तव्य बन जाता है यह रजो गुण वाले व्यक्ति की पहचान है

तमोगुण वाला व्यक्ति : आलसी कामचोर शराबी काम को टालने वाला सफाई से नहीं रहने वाला दिन भर सोते रहना दूसरों को दुख देकर आनंदित रहना दूसरों से ईर्ष्या करना दिनभर सोते रहना दूसरो की कामयाबी को देखकर दुखी रहना दूसरे के काम मैं टांग अड़ाना व्यक्ति का स्वभाव बन जाता है  यह तमोगुण वाले व्यक्ति की पहचान है

सतोगुण वाला व्यक्ति: दूसरों को सुखी देखकर उसे आनंद मिलता है सतोगुण वाला व्यक्ति हमेशा शांत रहता है उसका मन हमेशा निर्मल रहता है काम को ईमानदारी से करना लोगों की सहायता करके उसे खुशी मिलती है और हर काम में सफलता प्राप्त करता है किसी निर्दोष प्राणी की हत्या नहीं करता है वह तामसी भोजन जैसे मांस मदिरा धूम्रपान जैसी कोई गतिविधियां नहीं करता है उसका भोजन हमेशा शुद्ध शाकाहारी होता है कोई पाप नीच कर्म घमंड नहीं करना वह धर्म का पालन करता है यह सतो गुण वाले व्यक्ति की पहचान है


 👉जिस व्यक्ति मैं सतोगुण की प्रधानता होती है वैसे लोग भगवान को प्रिय होते है आपने देखा ही है कैसे भगवान श्री कृष्ण महाभारत मैं कैसे अधर्मियो अंत करते है और वही पांडव धर्म के मार्ग चलते तब श्री कृष्ण पांडवों को महाभारत युद्ध मैं विजय दिलाते है जब एक साधक यम नियम का पालन करने लगता है तब वह धर्म से जुड़ जाता है  योग साधना एक कठिन मार्ग  है योग मैं सफलता के लिए भगवान की कृपा वह गुरु की सहायता के बिना सफलता पाना बहुत मुस्किल है जब आप यम का पालन करते है तब आपके ऊपर ईश्वर की कृपा होने लगती है जिससे योग मैं साधक को समाधि की प्राप्ति होता है और आत्मज्ञान की प्राप्त होता है इसलिए योग मैं (यम) का पालन करना जरूरी है 

यम के लाभ 


यम का पालन करने से व्यक्ति का मन निर्मल वह शांत होता है व्यक्ति बुराई से अच्छाई के मार्ग पर आने लगता है समाज मैं मान प्रतिष्ठा बड़ने लगता है घर के देवी देवता भगवान व्यक्ति से प्रसन्न रहते है व्यक्ति पर भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है व्यक्ति के मन मैं अच्छे विचार आने लगते है हर काम मैं सफलता प्राप्त होने लगता है 

यम के नियम क्या है 


यम को पांच भागों मैं बाटा गया है यह पांचों नियम कुछ इस प्रकार है

सत्य : एक साधक को चाहिए कि वह सदा सत्य के मार्ग पर चले । और दुसरो को सत्य का मार्ग दिखाए. साधक को अपने जीवन मैं झूठ ना बोले हर काम ईमानदारी से करे किसी के साथ छल कपट बेइमानी न करे ।


अहिंसा : अक्सर कुछ लोग दूसरे का मजाक बनाते है किसी निर्दोष जीव की मौज मस्ती या खाने के लिए हत्या करते है यह बड़ा अपराध है किसी स्त्री को बुरी नजर से देखना उसके बारे मैं गलत विचार मन मैं लाना , बिना कारण के किसी को मरना पीटना किसी को मन से गाली देना यह सब अहिंसा में आते है हिंदू धर्म में ऐसे सभी कर्म पाप कर्म में आते है . एक साधक को जितना हो सके इन सभी गलतियों से दूर रहना चाहिए । 


अस्तेय : का अर्थ होता है किसी दूसरे व्यक्ति के समान वह चीज को उसके अनुमति के बिना नहीं लेना चाहे वह एक फूल हो या कोई सोना चांदी हो अन्यथा चोरी की श्रेणी आ जाता है दूसरे के चीज को हड़पना उसे अपना कहना यह एक अपराध है जिसे योग भाषा में अस्तेय के नाम जानते है एक योगी साधक को इन सब से दूर रहना चाहिए 


ब्रह्मचर्य : कोई स्त्री हो या पुरुष जब यौवन अवस्था आता है तब व्यक्ति काम वासना की और जाने लगता है उसे गलत सही लाभ हानि कुछ दिखाई नहीं देता है केवल कुछ देर के सुख आनंद के लिए वीर्य का नास करने लगता है जिससे उसके शरीर की वृद्धि रुक जाती है जिससे व्यक्ति कमजोर होने लगता है शरीर की सारी शक्ति खत्म होने लगती है जिसके कारण व्यक्ति तनाव में जीने लगता है इसलिए जितना हो सके एक साधक को ब्रह्मचर्य का पालन करते रहना चाहिए. ब्रह्मचर्य का अर्थ होता है : काम वासनाओं पर नियंत्रण रखना वीर्य की रच्छा करना व्यर्थ में वीर्य का नास नही करना । ब्रह्मचर्य कहलाता है


अपरिग्रह : का अर्थ होता है व्यक्ति जिस अवस्था में है उसे उसी मैं उसे खुश रहना चाहिए उसमे संतोष प्राप्त करना चाहिए जिससे इच्छाएं मिट जाती है अन्यथा इछाओ को पूरा करने मैं पूरा जीवन लग जाएगा. परंतु कभी जीवन मैं सुख आनंद नहीं मिलेगा इसलिए जीवन मैं संतोष का होना अति आवश्यक है एक इच्छा मिटने के बाद दूसरी इच्छा जन्म लेती है फिर तीसरी फिर चौथी इच्छाएं कभी नही मिटती है और इच्छाएं व्यक्ति को एक दिन मार देती है और पूरा जीवन यूंही इच्छाएं पूरा करने में बीत जाता है और हांथ मैं कुछ नहीं आता।

यम का पालन ना करने के हानि।


साधक में भक्ति भाव की भावना उत्पन नही होगी. योग मैं भगवान साधक की सहायता नहीं करते है . मन अशांत रहेगा भगवान की कृपा से व्यक्ति दूर हो जायेगा। उसमे बुराई की भावना जन्म लेंगी.