यह अष्टांग योग का पहला अंग है यह योग की पहली सीढ़ी है जिस पर साधक चलकर खुद को बुराई से हटाकर अच्छाई के मार्ग पर आता है जिससे योग के मार्ग में उसे आगे बढ़ने में आसानी हो सके यह योग की बाहरी साधना के अंतर्गत आता है जिसमे साधक को अपने दैनिक जीवन में इन नियमों का पालन करना पड़ता है जिससे साधक को योग में जल्दी सफलता प्राप्त हो सके ।


योग के दौरान साधक को अनेकों प्रकार की सिद्धियां शक्तियां मिलती है जब वह बुराई में मार्ग पर होगा तब वह इन शक्तियों का दुरुपयोग करने लगेगा और ध्यान से भटक कर शक्तियों में फंस जाता है इसलिए साधक को इन नियमों का पालन करने के लिए कहां गया है जिससे वह पूरी आदतों से बचकर अच्छाई में मार्ग पर आ सके और योग में सफलता प्राप्त करें और समाज को अच्छी दिशा की ओर ले जाए और वह शक्तियों का दुरुपयोग ना करें और लोगों की भलाई करें।


यम क्या है what is yam 


यम महर्षि पतंजलि के योग सूत्र में वर्णित अष्टांग योग का यह पहला अंग पहली सीढ़ी माना जाता है योग में आगे बढ़ने के लिए यम की साधना करनी पड़ती है जिससे साधक को योग करने में आसानी हो और वह अच्छाई की मार्ग पर बढ़ सके वह गलत को छोड़कर अच्छे कर्म करें यह नियम बाहरी साधना के नाम से भी जाना जाता है यह जीवन को बदलने में व्यक्ति किसी सहायता करता है यह व्यक्ति के दैनिक जीवन को सुधारना एक योगी को कैसे जीवन जीना है यह व्यक्ति को सिखाता है इसका काम दैनिक जीवन में इन आदतों को अपनाना होता है आगे


यम के प्रकार Types of Yams

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यम के पांच प्रकार



महर्षि पतंजलि ने नए साधकों के लिए यम के अंतर्गत पांच ऐसे नियम बनाए हैं जिसमें सत्य, अहिंसा अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह ।

1.सत्य :  अपने दैनिक जीवन में सत्य बोलना जो आप देखते हैं सुनते हैं उसी को बोलना अपने लालच या लाभ के लिए दूसरों को झूठ ना बोलना हमेशा सत्य के मार्ग पर चलना कुछ भी बोलने से पहले वह सत्य है या झूठ है यह पहचान कर उसे बोल ऐसा करने पर सत्य की साधना सिद्ध होता है
 

2.अहिंसा : अहिंसा का अर्थ होता है किसी को दुख ना देना शरीर मन वाणी इन सभी से किसी भी व्यक्ति को दुख नहीं देना अपने शरीर के द्वारा किसी को क्षति न पहुंचना दुख न पहुंचना किसी जंतु को मारकर ना खाना शुद्ध शाकाहारी भोजन करना, अपने मनोरंजन या खुशी के लिए दूसरे को दुख ना देना मन से किसी को बुरा ना बोलना अपने मन में बुरे विचार ना लाना दूसरों को गाली ना देना वाणी से किसी को गाली ना देना कटु शब्द ना बोलना जिस किसी को दुख पहुंचे हमेशा मीठे स्वर बोलना जिससे लोगों को खुशी मिले ऐसे शब्द को वाणी से ना निकले जिससे लोगों को दुख पहुंचे ऐसा करने पर अहिंसा की साधना सिद्ध होती है
  

3.अस्तेय :  चोरी ना करना बिना किसी से पूछे किसी वस्तु को ना उठाना किसी दूसरे के वस्तु को उसके इच्छा के अनुसार लेना अस्तेय कहलाता है इसके पालन में आप चोरी ना करे किसी दूसरे के वस्तु को बिना पूछे लेना आपको बंद करना होगा ऐसा करने पर आपको अस्तेय की सिद्धि प्राप्त होगी।
 

4. ब्रह्मचर्य :  योग में सफलता पाने के लिए शरीर में ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है इसलिए आपको वीर्य को बचा के रखना है इसलिए आप हस्तमैथुन जैसे क्रिया करना बंद करें किसी दूसरे स्त्री के शरीर या रूप के ख्याल उसका विचार अपने मन में ना लाना उसके प्रति मन में उठ रहे संभोग की भावनाओं को न सोचना ब्रह्मचर्य कहलाता है ऐसा करने पर ब्रह्मचर्य की सिद्धि प्राप्त होती है


5.अपरिग्रह :   योग के मार्ग में आपको अपने जीवन में संतुलन बनाना पड़ेगा इसके लिए आप जितना हो सके जीवन निर्वाह के लिए धन की आवश्यकता पड़ी उतना ही धन कमाना अधिक धन कमाने की लालच कामना नहीं करना जीवन में संतुलन बनाए रखना ऐसा करने पर अपरिग्रह की साधना की सिद्धि प्राप्त होती है


यम के लाभ  Benefits of Yam


साधक जब यम के नियम को अपने दिनचर्या जीवन में अपनाते हैं तब उसे इन नियम का पालन करने से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं सत्य बोलने पर उसके जिह्वा पर मां सरस्वती विद्यमान होती हैं उसके द्वारा बोले गए शब्द हमेशा सत्य निकलते हैं जब वह किसी को श्राप देता है तब उसके द्वारा बोले गए श्राप दूसरे को लगते हैं और वह सत्य होता है

 जब आप किसी के साथ अहिंसा नहीं करते हैं तब आपको संसार से प्रेम दया मिलता है जिससे लोग आपके तरफ आकर्षित होते हैं लोग आपकी इज्जत सम्मान करने लगते हैं 


अस्तेय अस्तेय का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में धन ऐश्वर्या स्वत ही व्यक्ति को मिलने लगता है उसकी हर एक तरह से धन खुद उसके पास आने लगता है यह अस्तेय के सिद्ध होने पर होता है


 ब्रह्मचर्य का पालन करने से व्यक्ति के शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ता है जिससे उसे अंदरूनी शक्ति मिलती है जिससे वह ध्यान समाधि लगाने मे आसान बनाता है और उसके प्रति स्त्री अप्सराएं उसके समक्ष आते हैं वे साधक के प्रति आकर्षित होते हैं वह जहां भी जाता है स्त्रियां उसके पीछे-पीछे आने लगते हैं साधक का चेहरा खिला फुर्तीला दिखाई देता है जिससे लोग उसके तरफ आकर्षित होते हैं

 
अपरिग्रह का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में आनंद खुशी स्वत मिलने लगती है जिससे आपको परम शांति सुख प्राप्त होता है जीवन में संतुलन होने से किसी भी प्रकार का तनाव डिप्रेशन नहीं होता है जिससे साधक खुद को आनंदित पाता है अपरिग्रह पालन करने से व्यक्ति को विभिन्न लाभ प्राप्त होते हैं जिससे उसे योग में आगे बढ़ने में व्यक्ति की सहायता करता हैं ऐसा करने पर व्यक्ति को ईश्वरीय शक्तियां मिलती हैं और ईश्वरीय शक्तियां उसको योग के मार्ग में बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं  


यम की साधना करना Practicing Yam



जो लोग नए हैं उन लोगों के लिए सबसे पहले अष्टांग योग का पहला अंग यम के नियम को अपने दैनिक जीवन में उतारना है जिससे आप बुराई के मार्ग से हटकर अच्छाई के मार्ग पर आ सके है जिससे आप के शरीर से नेगेटिव शक्तियां दूर हो सके हैं और आपके शरीर में पॉजिटिव शक्तियां आपके शरीर के भीतर प्रवेश करे हैं जिससे आपको योग में आगे बढ़ने में सहायता कर सके हैं नए साधक को यम की साधना के लिए इन पांचों प्रकार के नियमों को अपनाना है उसके बाद अष्टांग योग के दूसरे अंग नियम की और बढ़ना है  

इन नियमों का आप पालन करने के बाद अष्टांग योग के दूसरे अंग नियम की और बड़ते है।