यह अष्टांग योग का दूसरा अंग जिसमें योगी अष्टांग योग के दूसरे पड़ाव को पार करता है जिसमें साधक को योग करने के लिए अष्टांग योग के दूसरे अंग नियम की साधना करना पड़ता है जिसको पार करके योग में साधक आगे बढ़ता है योग में सफलता पाने के लिए और अष्टांग योग की साधना करने के लिए योगी को अष्टांग योग की दूसरे अंग का पालन करना पड़ता है जिससे आगे योग में जाने में किसी भी प्रकार की साधक को समस्या ना आए और वह सरलता से योग के मार्ग में आगे बढ़ सके। ध्यान समाधि में पहुंच सके, अब नियम के प्रकार क्या है और नियम को करने से साधक को क्या-क्या लाभ होते हैं और इसकी साधना कैसे करनी है यह जानने के बाद हम आपको अष्टांग योग के तीसरे चरण आसन पर चलेंगे।
नियम क्या है what is niyam
योग को सूत्र में वर्णित अष्टांग योग का यह दूसरा अंग पड़ाव है जिसमें योगी अष्टांग योग के दूसरे अंग पांच प्रकार के नियमों की साधना करता है जिससे वह योग में आगे बढ़े और ध्यान समाधि लगा सके और अपने वह आत्मा का दर्शन मिलन कर सके।
योग करने के लिए नई साधकों को पांच प्रकार के नियमों को योगी को अपने बाहरी जीवन में अपनाना पड़ता है यही नियम अष्टांग योग का नियम कहलाता है इन्हीं नियमों को अष्टांग योग के दूसरे अंग में महर्षि पतंजलि योगी को बतलाते हैं की योग में सिद्धि के लिए इन नियमों का पालन करना बेहद ही जरूरी है
नियम के प्रकार types of niyam
अष्टांग योग के दूसरे अंग नियम के पांच प्रकार हैं जिनको योगी इन नियमों को अपने जीवन में अनुसरण करता है यह अष्टांग योग की बाहरी साधना कही जाती है इसमें महर्षि पतंजलि ने साधक को योग में आगे बढ़ने के लिए इन पांच नियमों को अपने जीवन में उतारने के लिए कहा है जिससे साधक योग में जल्दी सफलता प्राप्त कर लेता है
1.शौच : योगी को सर्वप्रथम सूर्य उदय से पहले शौच करना अपने हाथों को अच्छी तरह से धोना अपने गुदा द्वार को सात बार मिट्टी से धोना अपने लिंग को तीन बार मिट्टी से धोना और हाथ को सात बार धोना से शौच की क्रिया पूर्ण होती है एक योगी को ऐसा प्रतिदिन नियम अनुसार करना होता है जिससे उसे शारीरिक शुद्ध प्राप्त हो सके।
2.सन्तोष : एक योगी को अपने जीवन में संतोष का होना अति आवश्यक है योगी को चाहिए कि वह जिस स्थिति में हो दुख में हो या सुख में उसी स्थिति को स्वीकार और अपने जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए जिससे उसे संतोष होने पर मन में अधिक विचार आने बंद हो जाते हैं और परम शांति का अनुभव प्राप्त होता है
3.तपस : शरीर को अधिक भोजन खाने के प्रति रोकना समय पर सोना मन मे बुरे विचार को बार-बार रोकना किसी के प्रति मन में संभोग या अधिक सोच विचार करने से मन को रोकना वाणी से किसी को बुरा ना बोलना किसी की चुगली ना करना यह मानसिक तप है
4.स्वाध्याय : योग में आगे बढ़ने के लिए एक योगी को चाहिए कि वह योग का ज्ञान अच्छे से अर्जित करें इसलिए वह प्रतिदिन अपने धर्म ग्रंथ योग को बार-बार पढ़ें उसको विचार करें उसे समझ ऐसा करने पर स्वाध्याय की सिद्धि प्राप्त होती है
5.ईश्वरप्रणिधान : योग में आगे बढ़ने के लिए ईश्वर को खुद को समर्पित करना ईश्वर से प्रेम करना अपने संपूर्ण जीवन को उनके प्रति समर्पित करना कर्म फल की इच्छा को त्यागना ईश्वर के बताए गए मार्ग पर चलना यैसा करने पर ईश्वरप्रणिधान की सिद्धि प्राप्त होती है
नियम के लाभ benifits of niyam
इन नियम के पांचों नियमों का अभ्यास इनका अनुसरण करने से साधक को शारीरिक शुद्धि मानसिक शांति जीवन में संतोष मन का भटकना, मन में बुरे विचार जाना, जुबान से अच्छे स्वर वाणी निकलना, ,जीवन में संतोष के आने से जीवन खुशी और आनंद में व्यतीत होना, स्वाध्याय का पालन से बुद्धि क्षमता का विकास, पढ़ा अधिक समय तक याद होने में सहायक होता है सोचने समझने की काबिलियत आती है और ईश्वर को खुद को समर्पित करने से खुद को टेंशन तनाव मुक्त आनंद का अनुभव करना, खुद को अच्छा सुखी अनुभव करना, यह कुछ नियम के पालन करने से साधक को लाभ प्राप्त होते हैं
जो साधक इन नियमों को अष्टांग योग के बताए गए नियम का पालन नहीं करते हैं उन लोगों को योग में सफलता पाना मुश्किल हो जाता है और जो साधक इन नियमों का पालन करते हैं तो उन लोगों के लिए योग के मार्ग में आगे बढ़ना आसान हो जाता है
नियम की साधना करना
अब नियम की साधना कैसे करना है यह जाने अष्टांग योग के दूसरे अंग नियम की साधना के लिए ऊपर बताए गए पांच प्रकार के नियमों को सबसे पहले अपने दैनिक जीवन के दैनिक दिनचर्या में उतारे और प्रतिदिन इन नियमों के अनुसार अनुसरण करें जिससे आपका जीवन एक योगी की भांति होने लगेगा सर्वप्रथम सुबह सूर्य उदय से पहले आपको उठ जाना है और शौच जाए उसके बाद शारीरिक व्यायाम करने के बाद सूर्य उदय से पहले ही स्नान करना स्नान करते समय शरीर को अच्छे से साफ करना योग के मार्ग में आगे बढ़ने के लिए शरीर का शुद्ध होना बेहद ही जरूरी है अन्यथा शरीर शुद्ध ना होने के कारण आप परमात्मा से ध्यान संपर्क नहीं लगा सकते हैं
योग करने के लिए शरीर का शुद्ध होना बेहद ही जरूरी होता है आपको जितना हो सके शरीर को शुद्ध रखने का प्रयास करना है जहां आप आसन लगा रहे हो वहां पर आपको सफाई शुद्धता का बेहद ही ध्यान देना है ध्यान लगाने से पहले शरीर और वह स्थान भी शुद्ध होना चाहिए जहां पर ध्यान लगाया जाता है तभी ध्यान का सही से लाभ योगी को प्राप्त होता है और भोजन करते समय अपने भोजन में सामान्य व्यंजन ले अधिक गर्म चीज तीखी मिर्च मीठा नमकीन जो शरीर के भीतर गर्मी पैदा करती हो ऐसी वस्तुओं का आपको सेवन नहीं करता है और आपको शाकाहारी शुद्ध भोजन करना है जिससे शरीर हष्ट पुष्ट हो और शरीर आपका पूरी तरह शांत रहे आपको अपने दिनचर्या में शाकाहारी भोजन को जगह देनी है जिससे आपका मन सात्विक होगा और आपके मस्तिष्क में विचार आने बंद होंगे और आप संसार के प्रति छुटने लगेंगे जिससे आप योग में आगे बढ़ने लगेंगे ।
एक सामान्य पुरुष का जीवन दुखों से भरा होता है और योग के मार्ग में में वह जब प्रवेश करता है तब उसके दिमाग में अनेकों प्रकार के विचार भावनाएं उसके जीवन होती है और अधिक धन की लालच कामना इच्छाएं भरी पड़ती है जिसको पूरा करना संभव होता है इसलिए जीवन में संतोष का होना बेहद ही जरूरी है इसलिए एक योगी के लिए जीवन में इच्छाओं कामनाओं के प्रति नहीं भागना चाहिए और वर्तमान में जिस स्थिति में है वह इसी स्थिति को स्वीकार करें और संतोष को अपने जीवन में उतारे।
एक योगी के लिए अपने विचार इंद्रियों, मन, को कंट्रोल करना होता है वह जितना भागेंगे ध्यान लगाने में साधक को उतना ही कठिन होगा इसलिए एक योगी को अपने मन में आने वाले अनेको प्रकार के कामना इच्छा भोग विलास स्त्रियों की कामनाओ की और भगाता रहता है इस लिए मन को वहां जाने से रोकना तप कहलाता है जिससे साधक का मन पूरी तरह शांत होने लगता और मन में भटकाव बंद हो जाते है जिससे उसे योग में आगे बढ़ने में बड़ी सहायता होती है अन्यथा तप न करने से व्यक्ति का मन उन्हें सब भोग विलास की ओर भागेगा जिससे योगी ध्यान लगा पाना मुस्किल होने लगता है इसलिए योग करने के लिए तप का का अभ्यास करना बेहद ही जरूरी होता है
एक योगी को अपने धर्म ग्रंथ का प्रतिदिन स्वाध्याय उसे पढ़ना योग की जानकारी लेना योग कैसे करना है इसका ज्ञान योगी को प्राप्त करना चाहिए जिससे योग के दौरान उसे योग में आगे बढ़ने में सहायक हो सके। अन्यथा वह ध्यान में मार्ग में भटक सकता है
योग में ईश्वर का दर्शन मिलना होता है लेकिन जब आपको ईश्वर में श्रद्धा विश्वास नहीं होगा तब तक आप उनका दर्शन नहीं कर सकते क्योंकि आपको उनके ऊपर विश्वास ही नहीं है तो आपको वह दिखाई ही नहीं देंगे इसलिए आप ईश्वर पर श्रद्धा विश्वास करें और खुद को उनके प्रति समर्पित करने से आपके भीतर ईश्वर के प्रति विश्वास से जागृत होने लगता है जिससे आपको परमात्मा प्राप्ति होने में सहायक होता है
इन पाचो प्रकार के नियमों का पालन करने से नियम की साधना सिद्ध होता है इनका पालन करने से नियम की साधना सिद्ध हो जाती है इसके बाद अब आपको योग करने के लिए आसन में बैठने का अभ्यास करना होता है इसलिए आप अष्टांग योग के तीसरे अंग आसन क्या है और इसे कैसे लगाना है आगे सीखेंगे