प्रत्यहार अष्टांग योग का पांचवा अंग जिसमें महर्षि पतंजलि कहते हैं मन अर्थात चित्त को भटकाने वाला शरीर की इंद्रियां होती है जब साधक अपने इंद्रियों पर नियंत्रण कर लेता है तब चित्त अपने आप शांत और स्थिर हो जाता है ध्यान करते समय शरीर की इंद्रियां साधक को ध्यान करने में बाधा पहुंचाते हैं ध्यान से चित्त को भटका देता हैं इसीलिए ध्यान करते समय योगी को प्रत्याहार की साधना करना जरूरी होता है जिससे इंद्रियां साधक के वश में हो जाती है

प्रत्याहार aasan
Pratyahar aasan : photo-pixabay

प्रत्याहार क्या है


प्रत्याहार अष्टांग योग का पांचवा चरण है जब साधक ध्यान करने लगता है तब इंद्रियां साधक का ध्यान लगाने में मन को भटकाती हैं जिससे साधक ध्यान नहीं लगा पता है इंद्रिया चित्त को स्थिर होने में भटकाती हैं उन इंद्रियों को विषयों से हटाकर चित्त को एक स्थान पर स्थिर रखना प्रत्याहार है 

ध्यान लगाते समय इंद्रिय मन को भटकती हैं जैसे इंद्रियों का काम है भोजन का स्वाद लेना गर्मी सर्दी महसूस करना वस्तुओं को देखना ध्वनियों को सुनना स्पर्श करना और अनुभव आदि रहते हैं जब साधक ध्यान लगाने बैठता है तो कभी साधक को सर्दी लगने लगती है तो कभी गर्मी कभी बाहर से आवाज सुनाई देने लगती है तो कभी मन में अच्छे भोजन खाने का विचार आने लगता है इंद्रियों के द्वारा मन कल्पनाएं साधक को दिखने लगता है जिससे साधक ध्यान नहीं लगा पता है जो इंद्रियां चित्र को चंचल कर रही हैं उनको विषयों से हटाकर एकाग्र करते हुए चित्त के स्थिर रखने की क्रिया प्रत्याहार कहलाती है


प्रत्याहार करने का विधि तरीका


 सुबह प्रातः उठकर एक हवादार ध्वनि रहित स्थान में सुख आसन मुद्रा में बैठकर अपनी गर्दन कमर और रीड की हड्डी को सीधा करके ध्यान की मुद्रा में बैठ जाएं और प्राणायाम की क्रिया करते हुए अपने मन को हृदय की ध्वनि पर केंद्रित करें जब इंद्रियां आपको विषयों की ओर भटकाए तब आप उसे विषयों से मन को हटाकर हृदय की ध्वनि पर लगाए

 ऐसा आपको बार-बार करना होगा ऐसा बार-बार करते रहने से एक ऐसी स्थिति आएगी जब इंद्रियां विषयों का आकर्षक दिखना बंद कर देगी और चित्त पूरी तरह शांत और स्थिर हो जाएगा और मन पूरी तरह साधक के कंट्रोल में आ जाएगा तब प्रत्याहार की साधना पूर्ण मानी जाएगी ।

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