योग क्या है अर्थ, परिभाषा उद्देश्य, संपूर्ण ज्ञान


योग हजारों सालों से चलती आ रही एक योग साधना है योग जीवन जीना सिखाता है योग द्वारा व्यक्ति अपने आप को जान लेता है कि वह क्या है उसे आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है जैसे महात्मा बुद्ध और स्वामी विवेकानंद को हुआ था उसी प्रकार एक साधक को खुद को जान लेता है की उसका संसार में जन्म क्यों हुआ है और उसे क्या करना है और परमात्मा की प्राप्ति व्यक्ति सर्व ज्ञानी हर प्रकार की समस्याओं का समाधान करने का ज्ञान प्राप्त हो जाता है और वह कभी दुखी नहीं होता और लोगों के दुखों को दूर करने लगता है। 

आप आगे पढ़ेंगे ।

  • योग क्या है
  • योग की परिभाषा और अर्थ क्या है
  • योग के लाभ होता है 
  • योग कितने प्रकार के होते हैं 
  • योग के रचयिता कौन है 
  • योग कहां से आरंभ हुआ
  • योग का उद्देश्य क्या है

योग क्या है योग बारे में सबसे सरल और आसान शब्दों में समझाने का प्रयास करता हु।

योग व्यक्ति को सिखाता है कि व्यक्ति के शरीर के भीतर उस जीव आत्मा को परमात्मा में मिलना करना इस प्रक्रिया को योग कहा जाता है सनातन हिंदू धर्म के मन्यताओ के आधार पर इस पूरे संसार को ईश्वर ने बनाया है ना पहले यहां पर कोई ऋषि मुनि रहते थे ना कोई जीव जंतु न ज्ञान था न विज्ञान केवल भगवान को छोड़कर इस पृथ्वी पर कोई नहीं था उन्होंने ही इस संसार को बनाया है उन्होंने ही योग का ज्ञान ईश्वर ने ही मनुष्यों के लिए दिया है इस संसार में कुछ नहीं था जो भी है वह भगवान की देन है 

योग की परिभाषा और अर्थ क्या है

योग का अर्थ होता है वह प्रक्रिया जिससे साधक अपने जीवात्मा को परमात्मा से संपर्क करने की विधि योग कहलाता हैं 

भगवान ने मनुष्यों के लिए परमात्मा से संपर्क करने के लिए प्रमुख तीन विधियां बताई हैं जिसमें 

पहला  ।    👉कर्म योग 

दूसरा  ।    👉 भक्ति योग

तीसरा ।    👉 ज्ञान योग

पहला ( कर्म योग) में धर्म का अनुसरण करने से व्यक्ति मृत्यु के बाद परमात्मा से संपर्क करता है  और उनके धाम चला जाता है 

उदाहरण से समझे जैसे. राजा हरिश्चंद्र ,ने धर्म का पालन किया और वह परमात्मा के धाम चले गए श्रवण कुमार, भरत,

दूसरा (भक्ति योग) भक्ति योग के द्वारा भगवान की पूजा आराधना और भगवान में मन लगाना खुद को परमात्मा को समर्पण कर देना भगवान में हमेशा लीन रहना आता है जिससे मनुष्य परमात्मा से का दर्शन करता है और उनमें मिल जाता है भक्ति योग के कुछ उदाहरण 👉 प्रहलाद, मीराबाई, कबीर दास, देवी अनसूया, मारकंडे,

तीसरा (ज्ञान योग) ज्ञान योग की साधना थोड़ी कठिन है जिसमें द्रव्य योग, हठयोगी ,अष्टांग योग का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करके इन साधनाओं के द्वारा परमात्मा की प्राप्ति की जाती है जिसे हम ज्ञान योग कहते हैं ज्ञान योग के कुछ उदाहरण 👉 स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद महर्षि पतंजलि, वेद व्यास, वाल्मीकि, ऋषि मुनि ध्यान योग में आते है

महत्वपूर्ण बाते

भगवान ने अपनी इच्छा से मनुष्य को बनाया है और बाद में मनुष्य जीवन जीने के बाद फिर उन्हीमे मिल जायेगा अगर वह भगवान की बात ना मानकर भगवान के बनाए गए मोह मायायो मैं फस जाता है तो वह केवल दुख ही दुख पाता है वह जीवन भर जन्म मरण के चक्कर में भटकता रहता है और वह हमेशा उसका जीवन दुख दर्द झेलता रहता है भगवान के आज्ञाओं का पालन न करने से जीवन नर्क के समान हो जाता है क्योंकि इस ब्रह्मांड में ईश्वर के छोड़ कुछ नहीं है हम ईश्वर से बने हैं और ईश्वर में ही विलीन हो जाएंगे ।


हठयोगी का अनुसरण करते हुए , यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि के द्वारा अपने शरीर इंद्रियों बुद्धि और मन को वश में करते हुए अपने भीतर जीवात्मा को परमात्मा में मिलना और उसमें मिल जाना योग है

योग के लाभ क्या है

मानव जीवन का उद्देश्य होता है कि वह इस संसार से मुक्ति प्राप्त कर सके और दोबारा इस संसार में उसका जन्म ना हो और वह परमात्मा से मिल जाए योग ऐसी साधना है जिससे मानव कि संसार से आसानी से मुक्ति प्राप्त करना है कुछ क्रियाएं हैं जिसे व्यायाम एक्सरसाइज से शारीरिक स्वास्थ्य मिलता है और अष्टांग योग की साधना करने से आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है

  • कुछ हठयोगी आसान क्रियाएं हैं जिससे मानसिक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है
  • पहला शारीरिक लाभ
  • प्राणायाम करने से व्यक्ति की आयु लंबी होती है दीर्घायु प्राप्त होती है
  • योग व्यायाम करने से बीमारियां दूर भागती हैं और स्वास्थ्य लाभ मिलता है
  • व्यायाम करने से व्यक्ति कभी मोटा और फूलता नहीं है
  • योग व्यायाम करने से कमजोरी आलस दूर होता है
  • एक्सरसाइज करने से शरीर का विकास दर बढ़ जाता है और शरीर का इम्यूनिटी सिस्टम अच्छा होता है

दूसरा मानसिक आध्यात्मिक लाभ

  • अष्टांग योग साधना से परमात्मा से संपर्क किया जाता है
  • अष्टांग योग से साधक को परमात्मा की प्राप्ति आत्मज्ञान की प्रति हो जाता है
  • ध्यान योग करने से मानसिक शांति और आनंद की अनुभूति होती है
  • अष्टांग योग की साधना करने से व्यक्ति संसार का सभी ज्ञान प्राप्त कर लेता लेता है
  • अष्टांग योग की साधना करने से व्यक्ति को जीवन में कभी बीमारियां नहीं आती है
  • हठयोगी में प्राणायाम योग करने से मन काबू में होता है और अधिक दिन तक जीवन जीने के लिए दीर्घायु प्राप्त होता है
  • प्राणायाम करने से जल्दी बुढ़ापा नहीं आता है

योग कितने प्रकार के होते हैं।

योग मुख्य 18 प्रकार की होते हैं लेकिन उनमें से प्रमुख तीन योग हैं पहले कर्म योग ,दूसरा भक्ति योग, तीसरा ज्ञान योग। 

जिसमें तीसरा जिसमे 👉 ज्ञान योग) में ही हठयोग योग और अष्टांग योग क्रियाएं आते हैं

योग के रचयिता कौन है योग आरंभ कहां से हुआ

योग की उत्पत्ति हिंदू धर्म से होती है क्योंकि हिंदू धर्म का इतिहास इतना बड़ा है किसका इतिहास के बारे में बताना बहुत मुस्किल है हिंदू धर्म के पुस्तकों में साफ बताया गया है कि योग कैसे उत्पन्न हुआ है और योग कहां से आया है

इस पृथ्वी इंसान को बनाने के लिए भगवान ने तीन रूप धारण किया पहले ब्रह्मा, विष्णु ,और शिव, ब्रह्मा जी ने इस पृथ्वी और मनुष्यों को बनाया है और भगवान शिव इस पृथ्वी इंसान को मिटाने नष्ट करने का कार्य दिया गया है और भगवान विष्णु को इस पृथ्वी और मनुष्यों को चलाने तथा संतुलन करने का कार्य दिया गया है पृथ्वी पर आज जो भी ज्ञान विज्ञान है वे सब भगवान विष्णु जी की देन है क्योंकि मनुष्यों को जीवन कैसे जीना है सारा ज्ञान उन्होंने मनुष्यों को दिया है क्योंकि वह पृथ्वी पर बार-बार जन्म लेते हैं और मनुष्यों को सिखाते हैं कि व्यक्ति को जीवन कैसे जीना चाहिए। 


 जैसे भगवान ने राम का अवतार धारण करके कर्म योग का अनुसरण मनुष्य को जीवन जीना सिखाया उसके बाद द्वापर युग में भगवान कृष्ण के रूप में जन्म लिए और वह कर्म योग का अनुसरण करते हुए अपने धर्म का पालन किया और एक योगी की तरह जीवन जी कर दिखाया ना की भोगी की तरह क्योंकि भगवान विष्णु ने भागवत गीता में साफ कहा है कि मैं ही धर्म का पालन करता हूं जब-जब धर्म की हानि होगी तब तक में इस धरा पर अवतरित हूंगा और धर्म की रक्षा करूंगा और धर्म की स्थापना करूंगा धर्म क्या है क्योंकि मैं इस पृथ्वी पर जन्म नहीं लूंगा तो मनुष्य लोग धर्म का पालन करना ही छोड़ देंगे इसलिए मैं धरती पर जन्म लेता हूं और मनुष्य को मैं खुद कर्म करके दिखाता हूं कि मनुष्य को कैसे कर्म करना चाहिए

आखिर धर्म क्या है धर्म का अर्थ होता है जीवन जीने की वह विधि जिससे मनुष्य धारण करके जीवन आनंद पूर्वक जीता है वह धर्म कहलाता है धर्म योग विधि जैसे👉 कर्म योग ,भक्ति योग ,ज्ञान योग, यह तीनों जीवन जीने की विधि ही धर्म है इसी की स्थापना के लिए भगवान पृथ्वी पर अवतरित होते हैं रहते है और मनुष्यों के लिए ज्ञान देते हैं इन्हीं से योग की उत्पत्ति हुई है

क्योंकि भगवान (भगवत गीता )मे कहते हैं कि मनुष्य को जीवन एक योगी की तरह जीना चाहिए ना कि भोगी की तरह ।

योग का उद्देश्य क्या है

योग का उद्देश्य बस यही है कि ज्ञान योग का अनुसरण करके अष्टांग योग विधि द्वारा अपने मन इंद्रियों और शरीर बुद्धि को वश में करके परमात्मा से संपर्क करना और आत्मज्ञान की प्राप्ति करना होता है अपने जीवन मैं योग नियमों का पालन करना होता है

निष्कर्ष

मनुष्य की आकृति उसे परमेश्वर की आकृति के रूप का बताया गया है केवल मनुष्य योनि में ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है बाकी किसी योनि में ईश्वर की प्राप्ति नहीं की जा सकती। मनुष्य योनि को कर्म योनि कहा जाता है क्योंकि मनुष्य के पाप ,पुण्य कर्म इसी योनि मैं लिखे जाते हैं बाकी किसी अन्य योनि मैं पाप पुण्य कर्म नहीं लिखे जाते व्यक्ति जैसा कर्म करता है उसे वैसा उसको फल प्राप्त होता है पाप कर्म के बदले दुख मिलता है और पुण्य कर्म के बदले सुख भोक्ता है जब व्यक्ति योग का अनुसरण करके जीवन जीता है तब इन पाप पुण्य दोनों से ऊपर उठकर उस परमात्मा की शरण की प्राप्त होती है और वह इस जन्म मरण के चक्र से छूट जाता है इसी को योग कहते हैं