धर्म क्या है गीता के अनुसार : गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बार-बार अपने धर्म पर निष्ठा पूर्वक चलने को कहते हैं और गीता में शुरू से लेकर अंत तक भगवान श्री कृष्णा केवल अर्जुन को धर्म के विषय में ही ज्ञान देते हैं और धर्म के अनुसार चलने को कहते हैं लेकिन वर्तमान समय में ऐसी स्थिति बन चुकी है 


कि धर्म क्या है और भगवान श्री कृष्णा कौन से धर्म की ज्ञान अर्जुन को करा रहे थे इसका किसी को ज्ञान नही है, इसलिए आज हम आपको यही जो सत्य धर्म है उसी का ज्ञान आपको हम कराने वाले हैं जिस धर्म को भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे थे उसी धर्म को हम आपको बताएंगे वह भी प्रमाण के साथ इसे जानने के बाद आपके मन में किसी भी प्रकार की दुविधा नहीं होगी और आप धर्म के विषय में सब कुछ जान सकेंगे।


what is Dharm: धर्म क्या है।


धर्म शब्द हिंदू धर्म ग्रंथ से आया हुआ है तो धर्म के विषय में केवल हिंदू धर्म ग्रंथ ही सत्य धर्म का ज्ञान प्रदान कर सकता है अन्य कोई नहीं इसलिए धर्म क्या है हिंदू धर्म ग्रंथ से देखते हैं

मनुष्य का जब जन्म होता है तब उसे इन 4 नियमों का जन्म से लेकर मृत्यु तक पालन करना होता है उसके जीवन यह उद्देश्य होता है जिसमें अर्थ, काम, धर्म, और मोक्ष,

अर्थ: अर्थ का मतलब होता है भोजन करना, अर्थात जीवन को चलाना ,जैसे एक जानवर सुबह उठने से लेकर शाम तक भोजन करता है फिर सो जाता है यही अर्थ कहलाता है व्यक्ति अपना जीवन जीने के लिए भोजन को प्राप्त करें और जीवन जीए यही अर्थ कहलाता है, जीवन जीने के लिए भोजन प्राप्त करना अर्थ कहलाता है।

काम: का अर्थ होता है कि संभोग करना, जिससे संसार आगे बड़े, और ऐसे ही संसार चलता रहे अगर संभोग न किया जाए तो संसार का विकास रुक जाएगा इसलिए काम का होना अति आवश्यक है संसार को बढ़ाने के लिए संभोग करना बच्चे पैदा करना काम कहलाता है

धर्म: का अर्थ होता है अर्थ और काम को एक नियम विधि के अनुसार कर्म करना धर्म कहलाता है

उदाहरण से :  जीवन जीने के लिए भोजन की आवश्यकता हमेशा होती है लेकिन भोजन को कैसे पाना है कैसे ग्रहण करना है एक विधि अनुसार इसे प्राप्त करना ,और काम संभोग को एक विधि अनुसार करना एक नियम से यही धर्म होता है जो व्यक्ति अर्थ और काम को धर्म विधि अनुसार नहीं करता उसे अधर्म  माना जाता है 

स्त्री समागम धर्म नियम: 

संभोग दिन में कभी नहीं करना चाहिए, संभोग हमेशा रात में करना चाहिए, किसी जल नदी में संभोग नहीं करना चाहिए, किसी मंदिर पूजा वाले स्थान पर नहीं करना चाहिए, किसी शुभ दिन ग्रहण काल में संभोग नहीं करना चाहिए, यह सब नियम धर्म कहलाता है इसी नियम धर्म को निष्ठा पूर्वक करना धर्म कहलाता है 


धर्म केवल मनुष्यों पर लागू होता है अन्य किसी पर नहीं क्योंकि मनुष्य जन्म 84 लाख योनियों में सबसे अलग माना जाता है क्योंकि इसमें गलत सही का पहचान करने की उसमें विवेक होती है और अन्य प्राणियों में नहीं और इसी शरीर से मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है अन्य किसी भी शरीर से नहीं इसलिए संसार का प्रत्येक व्यक्ति धर्म का पालन करता है इसका यही कारण है

मोक्ष: का अर्थ होता है की अर्थ, काम ,और मोक्ष, तीनों को करते हुए अंत समय में इन तीनों को छोड़कर इस संसार से विरक्त होकर मोक्ष अर्थात है इस जन्म मरण के चक्र से छूटकर मोक्ष प्राप्त करना होता है जिसके बाद दोबारा इस पृथ्वी लोक में जन्म मरण की प्रक्रिया खत्म हो जाती है और मोक्ष होने के बाद इस पृथ्वी लोक पर दोबारा जन्म नहीं होता है यह मोक्ष कहलाता है मोक्ष के लिए कर्म योग ,भक्ति योग, ज्ञान योग, द्वारा प्राप्त किया जाता है यह मोक्ष कहलाता है

धर्म क्या है और आसान शब्दों में 

संसार का प्रत्येक व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक हमेशा (कर्म कार्य ) करता रहता है जैसे सोना, बैठना ,जागना सोचना घूमना ,नाचना कोई काम करना ,जैसे एक जानवर अपने दैनिक जीवन में करता हैं वैसे ही मनुष्य अपने दैनिक जीवन में करता है लेकिन मनुष्य जानवरों से अलग अपने कर्म को एक नियम विधि से करता है और यह जो नियम विधि है यही धर्म कहलाता है
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उदाहरण :

जानवर का जीवन :  सुबह उठना तुरंत भोजन करना, सोना संभोग करना ,फिर भोजन करना ,सोना यह प्रक्रिया लगातार जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है यह एक जानवर इस प्रकार कर्म करता है

मनुष्य का जीवन:   सुबह उठना है भोजन करता है घूमता है फिरता है संभोग करता है फिर सोता है फिर वही प्रक्रिया लगातार चलती रहती है लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान इंसान धर्म नियम अनुसार कैसे जागना है कैसे भोजन करना है कैसे संभोग करना है कैसे सोना है कैसे उठना है अर्थात जो कर्म व्यक्ति जानवरों के भांति करता है

इस कर्म को वह एक नियम विधि से करने लगता है जैसे सुबह उठते ही पृथ्वी माता को प्रणाम करना फिर  जाना फिर स्नान करना, ईश्वर की पूजा करना, सूर्य देव को प्रणाम करना, भोजन को देवताओं को अर्पण करना, फिर भोजन करना जिस व्यक्ति का जिस कुल में जन्म होता है उसका अलग-अलग धर्म नियम होता है और उस नियम अनुसार चलना धर्म कहलाता है


जानवर और इंसान:  एक जानवर अपने जीवन में केवल सोना भोजन करना सेक्स करना और सो जाना यही उसका पूरा जीवन इसी में व्यतीत होता है लेकिन एक इंसान भी जानवरों की भांति सोना भोजन करना ,सेक्स करना और फिर सो जाना लेकिन इसमें वह इन सभी कार्यों को एक विधि अनुसार नियम से करता है जैसे पूजा पाठ करना , शादी विवाह, झूठ नहीं बोलना ,ब्रह्मचर्य का पालन करना, सत्य बोलना लोगों की सेवा करना यह नियम धर्म कहलाता है। आप इसे और प्रमाण के साथ देखें धर्म क्या होता है तब आपको पूरा समझ में आएगा देखिए स्कंद पुराण के अनुसार धर्म नियम। 

एक स्त्री धर्म नियम स्कंद पुराण : 

पतिव्रता स्त्री पति के भोजन कर लेने पर भोजन करती है, उनके खड़े रहने पर स्वयं भी खड़ी रहती हैं, पति के सो जाने पर सोती है और पहले ही जाग उठती है। स्वामी यदि दूसरे देश में हो, तो वह अपने शरीर का श्रृंगार नहीं करती अथवा यदि किसी कार्य वश पति बाहर जाए तो वह सब प्रकार के आभूषणों। को उतार देती है। 

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पति की आयु बढ़े, इस उद्देश्य से वह कभी पति के नामका उच्चारण नहीं करती। वह दूसरे पुरुष का नाम भी कभी नहीं लेती। पति चाहे कितनी ही खरी खोटी गली बात क्यों न कह डाले, वह उसे नहीं कोसती। जब स्वामी कहते हैं कि 'यह कार्य करो' तब वह शीघ्र उत्तर देती 'जो आज्ञा नाथ! मैंने अभी इस काम को पूरा किया। आप यह सन्झ लें कि कार्य पूरा हो गया।' 

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आपने जो अभी पढ़ा एक स्त्री जब उसकी शादी विवाह हो जाती है तब वह वहां पर जाकर जो विधि बताई गई है उस विधि अनुसार अपना पूरा जीवन जीती है इसी को धर्म कहते हैं और यह नियम पुरुष और स्त्री दोनों पर लागू होते हैं लेकिन नियम अलग-अलग होते हैं आपको इन नियमों को विष्णु पुराण, स्कंद पुराण, पद्म पुराण ,इन सब से धर्म का अर्थात नियम का ज्ञान लेना पड़ेगा तब जाकर आप धर्म का पालन कर सकते हैं.

इसी धर्म को श्रीमद् भागवत गीता में श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं कि तुम अपने छत्रीय धर्म जो शास्त्रों में वर्णित नियम धर्म को तुम निष्ठा पूर्वक पालन करो। यही धर्म पालन होता है, 

मुझे अब यकीन हो गया होगा कि आपको पूरी तरह धर्म के विषय में ज्ञान हो गया होगा कि धर्म वास्तव में क्या है और अब आगे बड़ते हैं देखते हैं कि धर्म क्या है गीता के अनुसार


धर्म क्या है गीता के अनुसार इस प्रकार है 

गीता के अनुसार धर्म इस प्रकार है कि मनुष्यों के लिए जो धर्म नियम कानून कर्तव्य शास्त्रों पुराने वेदों में बताया गया है उस विधि अनुसार अपना दैनिक जीवन में उसी नियम अनुसार कर्म अर्थात कार्य करना धर्म है यही बात भगवान श्री कृष्णा अर्जुन को समझने का प्रयास कर रहे हैं कि तुम अर्जुन अपने नियम कर्तव्य को निष्काम भाव से दृढ़ पूर्वक करो इससे तुम भागो नहीं जो तुम्हारा इस समय कर्तव्य है उस कर्तव्य को निष्ठा पूर्वक करो इस समय तुम्हारा धर्म अर्थात नियम कहता है कि तुम इन अधर्मियों को मार दो और धर्म की स्थापना करो यही ज्ञान भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को देते हैं यही धर्म है।


धर्म : धर्म यह जो शब्द है ना यह शब्द हिंदू धर्म से आया हुआ है अन्य किसी धर्म से नहीं और यह धर्म नियम कानून से बना कठिन नियम है जैसे एक आर्मी का जवान अपने शरीर को हष्ट पुष्ट करने के लिए एक्सरसाइज करता है दौड़ता है अनेकों प्रकार की व्यायाम करता है यह सारी प्रक्रिया वह एक नियम के अनुसार करता है और यही नियम उसे मजबूत सशक्त बनाता है और इसी प्रकार मनुष्य जीवन में जो धर्म है उसमें यही नियम है और यही नियम के अनुसार व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक इस नियम से चलता है जैसे।

 ब्राह्मण का धर्म जीवन:  सुबह 3:00 बजे उठना, उठते ही पृथ्वी माता ईश्वर को प्रणाम करना शौच करना, फिर व्यायाम करना स्नान करना सूर्य को नमस्कार करना जो भी मिले उसे नमस्कार प्रणाम करना फिर लोगों की सेवा करना फिर घर के इष्ट देव की पूजा करना लोगों के शादी विवाह करना यज्ञ हवन करना, और लोगों से भिक्छा लेकर अपना पूरा जीवन जीना यह एक ब्राह्मण का धर्म जीवन होता है और इसी प्रकार

छत्रिय धर्म का नियम:  एक छत्रित का धर्म जीवन कुछ इसी प्रकार होता है छत्रिय लोग अपने जीवन में बुरे लोगों को मारकर पूरे समाज की रक्षा करते  है और अपने जान की बलिदान देकर परिवार समाज की सेवा करनी होती है यही उसका कर्तव्य नियम धर्म कहलाता है भगवत गीता में श्री कृष्णा इसी को बार-बार कहते हैं कि तुम अपने धर्म को निष्ठा पूर्वक पालन करो यह सारी प्रक्रिया धर्म कहलाती है

निष्कर्ष:


यही निकलता है कि भगवत गीता में श्री कृष्णा अर्जुन को अपने छत्रिय् जो उसका धर्म नियम है कि लोगों की सेवा करना दुष्टो है का संघार करके अपने देश की रक्षा करना जैसे एक आर्मी का जवान बॉर्डर पर खड़ा होकर अपनी जान की परवाह किए बिना देश की रक्षा करता है उसी प्रकार एक क्षत्रिय का धर्म होता है कि वह अपने प्राणों की बलिदान देकर अपने समाज परिवार की सेवा करें इसी को श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि तुम इस कर्तव्य से क्यों भाग रहे हो तुम इस कर्तव्य को निष्ठा पूर्वक निष्काम भाव से करो और यही जो नियम कर्तव्य है इसी को आसान भाषा में धर्म कहते हैं

अब मुझे यकीन हो गया होगा कि आप लोगों को धर्म के विषय में पूरा ज्ञान हो गया होगा कि धर्म गीता के अनुसार क्या होता है अगर तुमको धर्म का ज्ञान लेना है तो विष्णु पुराण, स्कंद पुराण, पद्म पुराण ,इन धर्म ग्रंथो को पढ़कर आप धर्म के विषय में संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और अपने धर्म नियम को जान सकते हैं उसमें साफ-साफ धर्म नियम बताए गए हैं और अन्य किसी भी किताबों में धर्म का ज्ञान आपको नहीं मिलेगा क्योंकि धर्म केवल हिंदू धर्म ग्रंथ में ही स्थित है 

उसी से धर्म बना है धर्म उसी को कहते हैं जिस धर्म नियम पर स्वयं भगवान ईश्वर चलते हो और आपने देखा होगा कि भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण दोनों शास्त्रों अनुसार बनाए गए धर्म नियम पर अपना पूरा जीवन जीते हैं और अपने कर्तव्य का पालन करते हैं उसी प्रकार श्री कृष्ण अर्जुन को समझते हैं कि तुम भी मेरे प्रति अपने धर्म का पालन करो भागो नहीं अपने कर्तव्य से। 

आज तुमने जाना की भागवत गीता के अनुसार धर्म क्या है और कुछ जानना है तो आप हमें कमेंट में अवश्य बता सकते हैं।।