पत्नी धर्म के नियम : जब एक स्त्री का विवाह होता है तब उसे अपने ससुराल में जाकर धर्म में बताए गए नियम के अनुसार वहां पर पत्नी धर्म का पालन करना होता है अपने पति की धर्म अनुसार बताए गए नियमों से चलना होता है 


जिससे स्त्री को अनेकों प्रकार की शक्तियां सिद्धियां स्वतः ही प्राप्त हो जाती है और पत्नी अपने पति के  मृत्यु आने पर भी बचा लेती है और सूर्य को उगने से भी रोकने की क्षमता उसमें आ जाती है 


ऐसा तभी होता है जब धर्म के अनुसार बताए गए नियम के अनुसार स्त्री चलती है अन्यथा मन मानी आचरण करने से यह सिद्धियां शक्तियां महिलाओं को नहीं प्राप्त होती है अन्यथा वे घोर नरक में जाकर गिरती हैं 


आगे आप सब कुछ जानेंगे की महिलाओं को किन-किन नियमों का पालन करना होता है उनका विवाह हो जाता है तब उन्हें किन-किन नियमों पर चलना होता है उनको कैसे अपने पति की सेवा करनी होती है सब कुछ जानेंगे चलिए शास्त्रों, पुराणों ,हिंदू धर्म के अनुसार सही ज्ञान प्राप्त करें।


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पत्नी धर्म के नियम :        

पतिव्रता स्त्रियां अरुन्धती, सावित्री, (अनुसूया,पतिव्रता में सबसे बड़ी), शाण्डिली, सती, लक्ष्मी, शतरूपा, सुनीति, संज्ञा और स्वाहा के समान होती हैं। पति व्रताओं के धर्म मुनि वर व्यासजी ने इस प्रकार बतला ये हैं- पुराणों, स्कंद पुराण पृष्ठ no..117


1.  पतिव्रता स्त्री पति के भोजन कर लेने पर भोजन करती है, उनके खड़े रहने पर स्वयं भी खड़ी रहती हैं, पति के सो जाने पर सोती है और पहले ही जाग उठती है। 


2.  स्वामी यदि दूसरे देश में हो, तो वह अपने शरीर का श्रृंगार नहीं करती अथवा यदि किसी कार्य वश पति बाहर जाए तो वह सब प्रकार के आभूषणों। को उतार देती है। पति की आयु बढ़े, इस उद्देश्य से वह कभी पति के नामका उच्चारण नहीं करती। 


3. वह दूसरे पुरुष का नाम भी कभी नहीं लेती। पति चाहे कितनी ही खरी खोटी गली बात क्यों न कह डाले, वह उसे नहीं कोसती। जब स्वामी कहते हैं कि 'यह कार्य करो' तब वह शीघ्र उत्तर देती 'जो आज्ञा नाथ! मैंने अभी इस काम को पूरा किया। आप यह सन्झ लें कि कार्य पूरा हो गया।' 


4. पति के बुलाने पर वह घर का काम-काज छोड़कर तुरंत उनके पास दौड़ी जाती है और पूछती है- 'प्राणनाथ! किस लिए दासी को बुलाया है? मुझे सेवा का आदेश देकर अपने कृपा प्रसाद की भगिनी बनाए।' 


5. वह घर के दरवाजे पर देर तक नहीं खड़ी होती। दरवाजे पर सोती-बैठती भी नहीं। जो वस्तु नहीं देने योग्य होती है, उसे वह स्वयं किसी। को कभी नहीं देती। 


6.  पतिव्रता स्त्री को चाहिए कि स्वामी के लिये पूजन की सामग्री बिना कहे ही जुटा दे। नित्य नियम। के लिये जल, कुशा, पत्र, पुष्प, अक्षत आदि प्रस्तुत करे और पति की प्रतीक्षा में खड़ी होकर जिस समय जो वस्तु आवश्यक हो, वह सब शीघ्र बिना किसी उद्वेग के अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक प्रस्तुत करे।


7.  स्वामी के भोजन से बचे हुए प्रसाद स्वरूप अन्न और फल आदि को अत्यन्त प्रिय मानकर ग्रहण करे। सामाजिक उत्सवों का दर्शन तो वह दूर से ही त्याग दे। पति की आज्ञा। के बिना वह तीर्थयात्रा को और विवाहोत्सवों को देखने आदि के लिए भी न जाय। 


8. पति सुख से सोए हों, सुख से बैठे हों या स्वेच्छा नुसार किसी कार्य अथवा विचार में रम रहे हों, तो कार्य में विघ्न आने पर भी उन्हें कभी न उठा वे। 


9. (रजस्वला पीरियड  ) होने पर वह तीन रात तक पति को अपना मुँह न दिखावे। जबतक स्नान करके शुद्ध न हो जाय, तब तक अपनी आवाज भी पति के कानों में न पड़ने दे। भली भाँति स्नान कर लेने पर सबसे पहले पति के ही मुख का दर्शन करे, दूसरे किसी का नहीं। अथवा पतिदेव उपस्थित न हों तो मन-ही-मन उनका ध्यान करके सूर्य देवका दर्शन करे। 


10.  पति की आयु बढ़ने की इच्छा रखनेवाली पतिव्रता स्त्री हल्दी, कुंकुम, सिन्दूर, कज्जल, चोली, पान, मांगलिक आभूषण, केशों के श्रृंगार तथा हाथ और कान आदि के आभूषण अपने शरीर से कभी अलग न करे। पति। से विद्वेष रखनेवाली स्त्री से पतिव्रता नाते कभी बातचीत न करे। कभी अकेली न रहे और नंगी होकर न नहाए। 


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11.  ओखली, मूसल, झाडू, सिलवट, चक्की और चौकठ (देहली) पर सती स्त्री कभी न बैठे। पति के सम्मुख धृष्टता न करे। जहाँ - पति की रुचि हो, वहाँ - वहाँ उसे भी प्रेम रखना चाहिए।


12. स्त्रियों के लिए यही सबसे उत्तम व्रत, यही महान् धर्म और यही पूजा है कि वह पति की आज्ञा का उल्लंघन न करे। 


13. नपुंसक, दुर्दशाग्रस्त, रोगी, वृद्ध, सुस्थिर अथवा दुःस्थिर कैसा भी पति क्यों न हो, उस पति का वह कभी उल्लंघन न करे। वह लोहे। के बरतन में भोजन न करे। यदि उसे तीर्थस्नान की इच्छा हो, तो वह प्रतिदिन पति का चरणोदक पीये उसके लिए शंकर और भगवान् विष्णु से भी बढ़कर तक्षका पति ही है। 


14.  जो स्त्री पति की आज्ञा का उल्लंघन करके व्रत और उपवास आदि का नियम करती है, वह पति की आयु हर लेती है और मरने पर नरक में जाती है।* जो नारी पति के कोई बात कहने पर क्रोधपूर्वक उसका उत्तर देती है, वह गाँव में कुतिया और निर्जन वन में सियारिन होती है।


15.   स्त्रियों के लिए एकमात्र यही सर्वोत्तम नियम बताया गया है कि वह प्रतिदिन अपने पति के चरणों की पूजा करके ही भोजन करे और दृढ़ निश्चय पूर्वक इस नियम का पालन करे। पति से ऊँचे आसन पर न बैठे। दूसरे के घर में न जाय और कड़वी बातें कभी मुँह से न निकाले।


16.  गुरुजनों के समीप जोर से न बोले तथा न किसीको पुकारे ही। जो खोटी बुद्धिवाली स्त्री पति का साथ छोड़कर एकान्त में विचरती है, वह वृक्ष के खोंखले में सोनेवाली क्रूर उलू की होती है। जो दूसरे पुरुष की ओर कटाक्ष से देखती है, वह ऐंची आँखवाली हो जाती है। 


17. जो पति को छोड़कर अकेली मिठाइयाँ उड़ाती है, न्ह गाँव की विष्ठाभोजी सुअरी अथवा चमगादड़ होती है। जो हुंकार और त्वंकार करके (पति के प्रति अनादर सूचक वचन कहकर) अप्रिय भाषण करती है, वह गूँगी होती है।


18.  जो सौत से सदा ही ईर्ष्या रखती है, वह खोटे भाग्यवाली होती है। जो पति की आँख बचाकर किसी दूसरे पुरुष को निहारती है, वह कानी, विकृत मुख वाली अथवा कुरूपा होती है। 


19. पति को बाहर से आते देख जो तुरंत उठकर पानी और आसन देती है, पान का बीड़ा खिलाती है, पंखा करती, पाँव दबाती, प्रिय वचन बोलती और पसीना आदि दूर करके प्रियतम को सन्तुष्ट करती है, उसके द्वारा तीनों लोक तृप्त हो जाते हैं।


20.  पिता, भाई और पुत्र- ये सब परि मित- नपी-तुली वस्तुएँ प्रदान करते हैं, परंतु पति अपनी पत्नी को अपरिमित दान करता है। इसके दान। की कोई सीमा नहीं होती। ऐसे पति का कौन ऐसी स्त्री है, जो पूजन न करे? पति ही देवता है, पति ही गुरु है और पति ही धर्म, तीर्थ एवं व्रत है। अतः स्त्री सब छोड़कर एकमात्र पति की पूजा करे। 


21. कन्या। के विवाह काल। में ब्राह्मण लोग यह प्रतिज्ञा करवाते हैं कि तू पति के जीवन और मरण में भी उनकी सहचरी होकर रह। जो श्मशान में जाते हुए स्वामी के शव के पीछे-पीछे घर से (सती होने के लिए) प्रसन्नतापूर्वक जाती है,


उसे पग- पग पर अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त होता है। जैसे साँप पकड़ने वाला मनुष्य साँपको बलपूर्वक बिल से बाहर निकाल लेता है, उसी प्रकार सती स्त्री अपने पति को बलपूर्वक यमदूतों के हाथ से छीनकर स्वर्ग में ले जाती है। पतिव्रता स्त्री को देखकर यमदूत भाग जाते हैं, सूर्य भी उसके तेजसे सन्तप्त होते हैं और अग्निदेव भी उसने, तेज की आँच से जलने लगते हैं। पतिव्रता का तेज देखकर सम्पूर्ण तेज काँप उठते हैं। अपने शरीर में जितने रोएँ हैं, उतने करोड़ अयुत वर्षों तक वह पति के साथ स्वर्गसुख भोगती है और विहार करती है। 


22.  संसार में वह माता धन्य है, वह पिता धन्य है और वह पति धन्य है, जिनके घर में पतिव्रता स्त्री शोभा पाती है। केवल पतिव्रता नारी के पुण्य से उसके पिता, माता और पति- इन तीनों कुलों की तीन-तीन पीढ़ियाँ स्वर्गीय सुख भोगती हैं। 


23.  दुराचारिणी स्त्रियां अपना (शील -वर्जिनिटी, योनिद्वार की झिल्ली ) भंग करने के कारण पिता-माता और पति तीनों कुलों। को नरक में गिराती हैं और स्वयं भी इंद्र लोक तथा परलोक में दुःख भोगती हैं। 


24.  पतिव्रता का चरण जहाँ-जहाँ धरती का स्पर्श करता है, वह वह स्थान तीर्थभूमि की भाँति मान्य है। वहाँ भूमिपर कोई भार नहीं रहता। वह स्थान परम पावन हो जाता है। सूर्य भी डरते-डरते अपनी किरणों से पतिव्रता का स्पर्श करते हैं। चन्द्रमा अपने को पवित्र करने के लिये ही उसका स्पर्श करते हैं। 


जल सदा पतिव्रता देवी के चरणस्पर्श की अभिलाषा रखता है। वह जानता है कि पतिव्रता गायत्री देवी के द्वारा जो हमारे पाप का नाश होता है, उसमें उस देवी का पति व्रत्य ही कारण है। पतिव्रत्य के बल से ही वह हमारे पापों का नाश करती है। क्या घर-घर में अपने रूप और लावण्य पर गर्व करनेवाली नारियाँ नहीं हैं?


25.   परंतु पतिव्रता स्त्री भगवान् विश्वेश्वर की भक्ति से ही प्राप्त होती हैं। गृहस्थ-आश्रम का मूल (भार्या ,पतिव्रता स्त्री)  है। सुखन्न मूल कारण भार्या है, धर्म फल की प्राप्ति तथा सन्तानवृद्धिका कारण भी भार्या ही है। 


26. भार्या इंद्र लोक और परलोक दोनों पर विजय प्राप्त होती है। घर में भार्या के होने से देवताओं, पितरों और अतिथियों की तृप्ति होती है। वास्तव में गृहस्थ उसी को समझना चाहिये, जिसके घर में पतिव्रता स्त्री है। जैसे गंगा में स्नान करने से शरीर पवित्र होता है, उसी प्रकार पतिव्रता का दर्शन करके सम्पूर्ण गृह पवित्र हो जाता है। 


27.  जल से पति के लिये (तर्पण, हाथ में जल लेकर पति के लिए जल गिराना तर्पण होता है) , करना चाहिये तथा पति के पिता और पितामह के भी नाम-गोत्र आदि का उच्चारण करते हुए उनके लिए जल की अंजलि देनी चाहिये। पति बुद्धि से भगवान् विष्णु का पूजन करना चाहिये। वह विष्णु रूप धारी पति- परमेश्वर का ही ध्यान करे। 


28.  संसार में जो-जो वस्तु पति को प्रिय रही हो, वह पति को तृप्त करने। की इच्छा से गुण वान विद्वान् को देनी चाहिये। 


29.  विधवा स्त्री वैशाख और कार्तिक मास में विशेष नियमों का पालन करे। स्नान, दान, तीर्थयात्रा और पुराण श्रवण बारंबार करती रहे। मनुष्य को चाहिये कि वह धर्म कूपपर से पितरो के लिये विधिपूर्वक श्राद्ध करे। श्राद्ध में मनुष्य जो भूमि पर अन्न बिखेरते हैं, 


उससे पिशाच योनि को प्राप्त हुए पितर तृप्त होते हैं। जिनके स्नानवस्त्र से पृथ्वीपर जल गिरता है, उनके उस जलसे स्थावरयोनि को प्राप्त हुए पितर तृप्त होते हैं। श्राद्धकर्ता मनुष्यों के हाथ से जो यवान्न की कणिका पृथ्वी पर गिरती है, उससे देवभाव को प्राप्त हुए पितरों की तृप्ति होती है।


 तथा पिण्डों के उठाने जो यवान्नकी कणिका गिरती है, उससे पाल में गये हुए पितरों की तृप्ति होती है। जो वर्ण और आश्रम के आचार एवं कर्म का लोप करनेवाले एवं संस्कारहीन होकर मरे हैं, वे श्राद्ध में सम्मार्जनके लिये जो जल। का छींटा दिया जाता है, उससे तृप्त होते हैं। 


30.  ब्राह्मण। लोग भोजन करके जब मुँह- हाथ धोते और आचमन करते हैं, उस समय जो जल गिरता है, उससे अन्यान्य पितरों की तृप्ति होती है। इसी प्रकार यजमान के हाथ से अथवा उन श्राद्धसम्बन्धी ब्राह्मणों के हाथ से जो शुद्ध या स्पर्शरहित जल और अन्न गिराया जाता है, उससे उन पितरों की तृप्ति होती है, जा नरकमें पड़े हैं अथवा दूसरी किसी योनि में आए गये हैं। मनुष्य अन्यायोपार्जित द्रव्य से जो श्राद्ध तारते है 


31.   यदि विधवा स्त्री पलंग पर सोती है, तो वह पति को नरक में गिरा देती है; अतः पति। के सुख की इच्छा से विधवा स्त्री को धरतीपर ही शयन करना चाहिए। विधवा स्त्री को कभी अपने अंगों में उबटन नहीं लगाना चाहिए तथा उसे कभी सुगन्धित वस्तु। का उपयोग भी नहीं करना चाहिए। प्रतिदिन तिल और कुशयुक्त उससे चाण्डाल आदि योनि के पितरों की तृप्ति होती है।


32. इस प्रकार श्राद्ध से अनेकानेक बान्धवों की तृप्ति होती है। यदि अन्न द्वारा श्राद्ध करनेकी शक्ति न हो तो केवल (सागों, साग घांसो से बना भोजन ) से भी उसका अनुष्ठान हो सकता है। अतः मनुष्य भक्तिपूर्वक शाक से भी श्राद्ध करे। श्राद्ध करनेवाले शुभाशुभ कर्म अवश्य वृद्धि को प्राप्त होता है। यदि धर्मारण्य में सब पाप-ही-पाप किया गया तो निश्चय ही पाप भी बढ़ता है और उसे करनेवाला घोर नरक में पकाया जाता है। जैसे पुण्य, वैसे पाप;


शास्त्रों अनुसार भोजन करते समय नियम विधि मंत्र अर्थ सहित


निष्कर्ष


एक पतिव्रता स्त्री जब अपने (मायके ससुराल) जाती है तब इन नियमों का उन्हें पालन करना होता है यह नियम हिंदू धर्म ग्रंथ पुराणों उपनिषद में मिलता है जब कोई पतिव्रता स्त्री इन नियमों का पालन करती है 

तब वह अनेको प्रकार की सिद्धियां शक्तियां प्राप्त कर लेती हैं और पति की सेवा करने मात्र ,निभाने मात्र से ही स्वर्ग जैसे लोकों में सुख भोक्ति हैं उन्हें और कुछ करने की आवश्यकता नहीं होती है बस केवल पति की सेवा मात्र से ही उसको स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है 


लेकिन जो महिलाएं ऐसा नहीं कर पाती वह घोर नरक में जाकर गिरती हैं इसलिए महिलाओं को सदा अपने को (वर्जिनिटी) रखना चाहिए अन्यथा वर्जिनिटी टूटने पर उनका पतिव्रता नष्ट हो जाता है इसका वह विशेष ध्यान रखें यह जानकारी आप पुराणों से भी प्राप्त कर सकते हैं उसका हम आपको लिंक भी दिए हैं जिसके द्वारा आप इसे पुराणों उपनिषदों से भी प्राप्त कर सकते हैं


धर्म का ज्ञान सही और धर्म अनुसार जानने के लिए आप हमें कमेंट में अवश्य बताएं जिससे आपका भला हो सके और दूसरों का और यह आर्टिकल अपने पत्तियों अन्य लोगों के साथ अवश्य शेयर करें 

जिनको यह पता नहीं है जिससे उनको पति धर्म का सही ज्ञान हो सके, और यह जानकारी लेकर आपका जीवन धन्य हो सके और आपके जीवन में सुख शांति बने.. हमारे तरफ से आपको धन्यवाद। 🤗Good bay, fir milate hai...