यह अष्टांग योग का पांचवा अंग है जिसमें महर्षि पतंजलि ने शरीर की इंद्रियों के विषयों से मन को हटाकर किसी एक वस्तु पर ले जाने की और जोर दिया है प्रत्याहार में शरीर की सभी कामनाओं वासनाओं से मन को हटाकर शरीर के अंदर अंतर्मुखी करना होता है चलिए जानते हैं कि प्रत्याहार क्या है इसका अर्थ लाभ और उसकी साधना कैसे की जाती है


प्रत्याहार क्या है 

प्रत्याहार अष्टांग योग का पांचवा अंग है जिसमें योगी अपने समस्त इंद्रियों के भोगों इच्छाओं कामनाओं का त्याग करना है  

शरीर के समस्त भोग इच्छाएं कामना से मन में उठने वाले अनेको प्रकार के इच्छाओं भोग के प्रति मन को रोक कर अपने आत्मा के अधीन करना प्रत्याहार कहलाता है

अष्टांग योग में यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार यह पांचों की साधना बाहरी साधना के अंतर्गत आता है जिसमें शरीर के बाहरी रूप से शरीर की साधना करना पड़ता है इसके बाद धारणा ध्यान समाधि में अंतरंग साधना आता है जिसमें शरीर के भीतर की साधना शुरू होती है। 

प्रत्याहार का अर्थ 


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प्रत्याहार का अर्थ : प्रत्येक + आहार शरीर के समस्त इच्छाओं कामनाओं इंद्रियों के विषयों का त्याग उसे नष्ट कर देना प्रत्याहार कहलाता है जब योगी अपने शरीर के इंद्रियों के विषयों पर नियंत्रण करते हुवे इनका हमेशा के लिए त्याग कर देता है तब उसे प्रत्याहार की साधना प्राप्त होती है जिससे योग में उसे उसका मन शरीर भटकाना बंद कर देता है और योगी सरलता से योग के मार्ग में आगे बढ़ता है

प्रत्याहार के लाभ

प्रत्याहार के सिद्ध हो जाने के बाद व्यक्ति को इंद्रियों के विषय की ओर शरीर भागना बंद कर देता है व्यक्ति जिस काम को करना चाहता है उसे काम में संपूर्ण शरीर व्यक्ति का साथ देने लगता है इच्छाएं और कामानाओ के नष्ट होने से व्यक्ति का संपूर्ण जीवन शांति आनंद में हो जाता है 


प्रत्याहार करने की साधना विधि


प्रत्याहार की साधना करने के लिए सबसे पहले आप आसन लगाए और आसन के दौरान प्राणायाम की प्रक्रिया करते हुए आसन और प्राणायाम को सिद्ध करने के बाद प्रत्याहार की साधना स्वयं ही सिद्ध हो जाती है बस आपको इतना ज्ञान रखना है कि यह पूरा संसार नश्वर है इस संसार में जितने भी भोग विलास हैं वे सब मिथ्या है उन सबको जितना भोगा जाए उतना ही कम है यह इच्छाएं कामनाएं कभी भी भरने वाली नहीं है एक इच्छा को पूरा करने के बाद दूसरी इच्छा जन्म ले लेती है इसलिए इन इच्छाओं का पूर्ण तहत त्याग कर देने से इच्छाओं की और मन भागना बंद कर देता है इसका ज्ञान होने पर प्रत्याहार की साधना सिद्ध हो जाती है जिसके बाद योगी अब संसार बनाए गए माया को पार करते हुए योग में आगे बढ़ता है इसके बाद अब योगी को प्रत्याहार की साधना करने के बाद अष्टांग योग के छठवें अंग धारणा लगाना पड़ता है अब आप धारणा लगाना सीखे।

धारणा क्या है अर्थ धारणा की साधना विधि