आत्मा और जीवात्मा के विषय में चर्चा मानव सभ्यता की प्राचीनतम प्रश्नों में से एक है। भारतीय दर्शन, विशेष रूप से वेदांत और योग, इन अवधारणाओं को गहराई से समझने और व्याख्या करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आत्मा और जीवात्मा के अंतर को समझना न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन के उद्देश्य और अस्तित्व के अर्थ को भी स्पष्ट करता है। योग में आगे बढ़ने के लिए आत्मा और जीवात्मा को समझना बहुत आवश्यक होता है आत्मा क्या है और जीवात्मा क्या है यह प्रश्न हमेशा दिमाग में उठते रहते हैं आज इन्हीं प्रश्नों का उत्तर आप इस आर्टिकल में जानेंगे की आत्मा क्या है जीवात्मा क्या है इसके उत्पत्ति कैसे हुई है या कैसे बना है सब कुछ हम जानेंगे।

आत्मा क्या है 

आत्मा एक ज्योति रूप प्रकाश है जो जीवात्मा के शरीर के भीतर प्रज्वलित रहती है जिसका ना आकार है ना रूप है न शरीर है ना इसकी आंखें हैं ना इसके पैर है यह निर्विकार पूरे ब्रह्मांड में स्थित परमेश्वर है जो प्रत्येक कण-कण में बसा हुआ है आत्मा ही परमात्मा है जैसे विज्ञान आज के समय में क्वांटा के अनुसार मान चुके हैं कि ऊर्जा इस पूरे ब्रह्मांड में फैली हुई है ऊर्जा न पैदा होती है ना नष्ट होती है यह सदा से है और सदा रहेगी ना इसका अंत है न समाप्त इसी से पूरा ब्रह्मांड सृष्टियां बनती हैं और इसी में विलीन हो जाती हैं जैसे भगवान श्री कृष्णा भागवत गीता में कहते है मैं मनुष्यों को उत्पन्न करता हूं फिर अपने में समा लेता हूं उसी प्रकार मैं इस ब्रह्मांड की रचना करता हूं और फिर इन सभी रचना को अपने स्थापित कर लेता हूं।

आत्मा मनुष्य के शरीर में स्थित जीवात्मा के भीतर निवास करने वाला आत्मा है वही सदा से रहने वाला जिसका कभी न अंत है न जन्म है वही ईश्वर आत्मा है

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आत्मा का अर्थ 

व्यक्ति के शरीर में स्थित जीवात्मा के भीतर प्रज्वलित ज्योति रूप प्रकाश आत्मा कहलाती है आत्मा परमात्मा का ज्योति रूप स्वरूप होता है जिसके कारण ही जीवात्मा चैतन्य रूप से कार्य करता है उसमें शक्ति देने का कार्य आत्मा ही करती है अगर हम आत्मा को जीवात्मा के शरीर से निकाल दे तो जीवात्मा कुछ नहीं कर सकती आत्मा के ही कारण जीवात्मा चैतन्य रूप से कार्य करता है और प्रकृति को देखा है सुनता है उसका स्वाद लेता है और दुख सुख को भोक्ता है लेकिन आत्मा सुख दुख को नहीं भोगता वह सदा दुख सुख से परे निर्विकार रूप में रहती है उसे न दुःख छू सकता है ना सुख। 

जीवात्मा क्या है 

जीवात्मा सुख-दुख को भोगने वाला मन बुद्धि शरीर का स्वामी दृश्य को देखने वाला चैतन्य रूप से रहने वाला जीवात्मा कहलाता है प्रकृति दृश्य है और इस प्रकृति को देखने वाला उससे आनंद लेने वाला चैतन्य जीवात्मा है

भगवत गीता में श्री कृष्ण कहते हैं भगवत गीता में श्री कृष्ण कहते हैं कोई जीवात्मा मेरे प्रकाश रूप एक अंश को अपने में धारण करके अनेकों ग्रह ब्रह्मांड में विचरण करता है पृथ्वी लोक पर जन्म लेता है मरता है और सुख-दुख को भोक्ता है वही जीवात्मा है 

जीवात्मा का अर्थ

मन बुद्धि शरीर पांच ज्ञान इंद्रियां पांच भोग इंद्रिय पांच कर्म इंद्रियो का स्वामी उसको चलाने वाला उसके द्वारा सुख दुख को भोगने वाला इसका स्वामी मालिक चैतन्य रूप जीवात्मा है

जीव आत्मा का संधि विच्छेद करने पर जीव + आत्मा प्राप्त होता है जिसमें जो चेतना मैं प्रकृति जब योग करती है तब वह चेतन जीव का धारण कर लेता है और उसे जीव में परमात्मा अपना एक अंश उसमें डाल देते हैं तब जाकर वह जीवात्मा बन पाता है

चेतना क्या है

शरीर को चलाने वाला चेतना और शरीर अपने द्वारा चेतन को सुख प्रदान करता है और दुख भी प्रदान करता है चेतन को मन अनेकों प्रकार के चित्त में विचार उत्पन्न कर उसे प्रसन्न खुश करता है चेतना प्रकृति से अलग दृष्टा है और मन बुद्धि और यह शरीर दृश्य है प्रकृति को देखने वाला यथार्थ संसार को देखने वाला चैतन्य है जो प्रकृति है वह दृष्ट है जिसको चेतना देखती दृश्य है और उससे चेतना आनंद लेती है प्रकृति चेतन को सुख प्रदान करती  है 

चेतना केवल एक है जब उसके में मन बुद्धि अहंकार का आगमन होता है तब वह खुद को अलग समझने लगता है जब चेतन खुद को सब में देखना लगता है और पूरे ब्रह्मांड को अपने में देखने लगता है तब वह अपने मन बुद्धि अहंकार को नष्ट करके चैतन्य रूप में स्थित होकर आनंद को प्राप्त होता है फिर उसका न अंत होता है ना जन्म होता है वह मोक्ष को प्राप्त हो जाता है

आत्मा और जीवात्मा में अंतर

आत्मा परमात्मा का ही स्वरूप होता है और आत्मा छोटा चेतना जीवात्मा होता है लेकिन यह भी सर्वव्यापी यह भी होता है लेकिन इसमें जब प्रकृति अपना योग करती है तब यह जीव का धारण कर लेती है और आत्मा इसके भीतर स्थित होने से यह जीवात्मा कहलाती है आगे आप देखेंगे की आत्मा और जीवात्मा में क्या-क्या अंतर देखने को मिलते हैं

आत्मा 

आत्मा ही परमात्मा है
आत्मा परमात्मा का एक अंश होता है
आत्मा जीवात्मा के भीतर विद्यमान रहता है
जीवात्मा में आत्मा एक ज्योति रूप में प्रकाशित रहती है
आत्मा के कारण ही जीवात्मा कार्य कर पाता है।
आत्मा जीवात्मा से बड़ा होता है 

जीवात्मा

जीवात्मा आत्मा को धारण किए रहता है
आत्मा के बिना जीवात्मा कार्य नहीं कर सकता है 
जीवात्मा का स्वामी आत्मा होता है
आत्मा के आधीन जीवात्मा रहता है
आत्मा से छोटा जीवात्मा होता है
जीवात्मा ही चेतना होता है 
जीवात्मा में प्रकृति का हमेशा योग होता है उसके कारण वह जीवात्मा का स्वरूप हो जाता है

निष्कर्ष 

चेतन में जब प्रकृति अपना योग करती है उसमें मन बुद्धि अहंकार पंच कर्म इंद्रियां पंच ज्ञान इंद्रिया का योग करती है तब वह चेतन जीव का रूप ले लेता है और उस चेतना के अंदर ज्योति रूप परमात्मा होता है चेतना के भीतर से आत्मा को कभी भी निकल नहीं जा सकता क्योंकि चेतना का स्वामी आत्मा होता है

जीवात्मा की उत्पत्ति 

जीवात्मा की उत्पत्ति उस ज्योति रूप प्रकाश से हुआ है उसी से यह पूरा चेतन जीवात्मा प्रकृति यह पूरा ब्रह्मांड बना है और यह पूरा ब्रह्मांड फिर उसी में समा जाएगा और फिर ब्रह्मांड का उदय होगा ऐसे ही सिलसिला लगातार चलता रहेगा, 

आत्मा और जीवात्मा को देखने और मिलने का तरीका उपाय

आत्मा और जीवात्मा को देखने के लिए अनेक प्रकार के तरीके बताए गए हैं जिसके द्वारा कोई भी इंसान अपने भीतर आत्मा और जीवात्मा और अपने चैतन्य रूप को देख सकता है केवल मनुष्य ही अपने आत्मा और जीवात्मा को देख सकता है उनसे संपर्क कर सकता है बाकी किसी अन्य प्राणी ऐसा नहीं कर सकते हैं यह केवल मनुष्य ही कर सकता है

ज्ञान योग द्वारा

जब व्यक्ति आत्मा जीवात्मा से संपर्क उनसे मिलने का ज्ञान प्राप्त करके आत्मा जीवात्मा को देख सकता है जब व्यक्ति हिंदू धर्म ग्रंथ में परमात्मा से संपर्क करने का ज्ञान प्राप्त कर लेता है तब वह इसके द्वारा आत्मा को देख पता है

हठयोगी द्वारा

  हठयोगी में ऐसे विधियां बताई गई है जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति अपने भीतर बैठे चैतन्य रूप जीवात्मा और परमात्मा को देख सकता है उनसे संपर्क कर सकता है  

अष्टांग योग द्वारा

अष्टांग योग को आत्मा और जीवात्मा को देखने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है इसके द्वारा आसानी से अपने आत्मा जीवात्मा को देखा जा सकता है उनसे संपर्क कर सकता है और उसमें खुद को विलेन करके आनंद को प्राप्त किया जा सकता है

निष्कर्ष 


जैसे शरीर अनेक घटकों से मिलकर बना है शरीर के अंदर प्राण मन बुद्धि पंच कर्म इंद्रियां पांच ज्ञान इंद्रियां होने से यह पूरा शरीर बना है वैसे ही उससे भी छोटे शुष्म रूप में जीवात्मा होता है जीवात्मा से भी छोटा चैतन्य स्वरूप होता है और उसे चैतन्य स्वरूप से भी छोटा ईश्वर आत्मा होता है ऐसे ही या पूरा ब्रह्मांड मिलकर बना होता है

जैसे किसी हम एक छोटे कण को छोटा करते जाए तो एक समय आने के बाद परमाणु बचता है और उससे भी छोटे करते जाए तो उसमें केवल ऊर्जा ही बचता है और ऊर्जा का अंत है ना उत्पत्ति ऊर्जा हमेशा से है और हमेशा रहेगा यही ज्ञान हिंदू धर्म ग्रंथो में भी बताया गया है कि ईश्वर सर्वव्यापी है वह कण-कण में बसा हुआ है वह एक ऊर्जा है जिसे आप जीवात्मा के अंदर ज्योति प्रकाश के रूप में आप आगे जाने हैं । 

जीवात्मा की उत्पत्ति कैसे हुई है?

जीवात्मा की उत्पत्ति उस ज्योति रूप प्रकाश से हुई है जहां से इस पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है चेतना में जब प्रकृति अपना योग करती है तब जीव बनता है जीव में आत्मा अपना योग करता है तब जीवात्मा की उत्पत्ति होती है

जीवात्मा का स्वरूप क्या होता है ?

जीवात्मा का स्वरूप वैसा ही होता है जैसा व्यक्ति का बाहरी होता है उसके पंच भूत ना होने के कारण जीवात्मा व्यक्ति को दिखाई नहीं देता है लेकिन उसका स्वरूप एक मनुष्य के स्वरूप जैसा ही होता है

क्या आत्मा परमात्मा है?

भगवत गीता के अनुसार आत्मा को ही परमात्मा का स्वरूप बताया गया है जीवात्मा के भीतर आत्मा परमात्मा के रूप में निवास करता है यह भागवत गीता का कथन है

आत्मा किसका रूप है?

आत्मा इस परब्रह्म ज्योति रूप ईश्वर का स्वरूप है भगवत गीता में आत्मा को परमात्मा का ही स्वरूप बताया गया है

आत्मा को कौन देख सकता है ?

भगवत गीता के अनुसार आत्मा को व्यक्ति का मन ही आत्मा और जीवात्मा चेतना को देख सकता है और उसका ज्ञान उसे प्रदान करता है

आत्मा की उम्र कितनी है?

आत्मा की कोई उम्र नहीं होती है वह निर्विकार है उसकी ना उत्पत्ति होती है ना अंत होता है वह सदा से ही और सदा रहेगा आत्मा अविनाशी परमेश्वर है

जीवात्मा मोक्ष प्राप्त करके किसका रूप धारण करती है?

जीवात्मा मोक्ष प्राप्त करने के लिए मनुष्य शरीर का धारण करती है और अष्टांग योग ज्ञान योग के माध्यम से जीवात्मा मोक्ष को प्राप्त कर लेती है