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संसार का प्रत्येक के व्यक्ति आनंद और खुशी की चाह रखता है वह कभी नहीं चाहता कि उसके जीवन में कभी दुख दर्द तकलीफ जैसी समस्याएं आए वह हमेशा सुख शांति और आनंद की कामना करता रहता है लेकिन व्यक्ति को इस संसार में खुशी मिलती है लेकिन कुछ ही समय बाद खत्म हो जाती है फिर वह खुशी को पाने के लिए विषयों की ओर भागता है वह विषयों में खुशी को पाने के लिए हमेशा लगा रहता है जैसे बड़ा मकान बड़ी-बड़ी करें गाड़ियां अच्छे-अच्छे भजन पकवान सुंदर कन्याओं के साथ संभोग करना जैसे विषयों से खुशी पानी के लिए हमेशा प्रयत्न करता रहता है लेकिन इस वह मिलने के बाद कुछ ही समय बाद वह सुख मिलन बंद हो जाता है और वह फिर और उससे बड़े विषयों की ओर कामना करने लगता है यह सिलसिला जीवन भर चलता रहता है जब तक की व्यक्ति की मृत्यु ना हो जाए।


इससे यह सिद्ध होता है कि यह विषयों का आनंद खुशी वह आनंद नहीं है जिसे पाने के दादा और किसी आनंद खुशी को पाने की छह खत्म हो जाती है व्यक्ति जीवन भर आनंद खुशी मान सम्मान पाने के लिए सदा लगा रहता है लेकिन उसे वह आनंद नहीं मिल पाता तो सवाल उठता है कि वह कौन सा आनंद है जिसे पानी के बाद किसी अन्य सुख पाने की चाह खत्म हो जाती है और उसे पाने के बाद किसी अन्य प्रकार की चाह नहीं रह जाती।


आज आप वही आनंद के बारे में जानेंगे जिसे पाने के बाद अन्य सुखों की कामना खत्म हो जाती है और उस आनंद को पाने के बाद अन्य किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती और व्यक्ति का जीवन आनंद में परमानंद हो जाता है जिसे साधारण शब्दों में कह सकते हैं कि संसार का सबसे बड़ा आनंद है 


खुशी और आनंद में अंतर

आपको आनंद को समझने से पहले आपको खुशी और आनंद में अंतर जानना बेहद जरूरी है क्योंकि कुछ लोग समझते हैं की खुशी ही सबसे बड़ा आनंद है लेकिन आनंद और खुशी में बड़ा फर्क और अंतर होता है कुछ इस प्रकार

खुशी इस प्रकार मिलती है

अपनी प्रशंसा सुनने में खुश होना।

अपनी मनपसंद वस्तु पाने में खुशी का अनुभव करना

स्त्री पुरुष के सॉन्ग सहयोग में आनंद को प्राप्त करना।

स्वादिष्ट अच्छे पकवान खाने में खुश होना ।

अच्छे गाने संगीत सुनने में खुश होना ।

अच्छे दृश्य झरने पहाड़ खूबसूरत वस्तुओं को देखने में खुशी मिलन।

अच्छे सुगंधित वस्तुओं को सुनने में खुशी  का मिलन।

इंद्रियों द्वारा जो खुशी मिलना स्वाद लेने ,सुनने से, देखने,स्पर्स से,सुघने से, 

विषयो द्वारा खुशी मिलना 


आनंद इस प्रकार मिलता है

योग के माध्यम से आनंद की अनुभूति करना।

अपने जीवन में दुख और सुख को संतुलन कर लेने पर आनंद की अनुभूति करना।

अपने शरीर इंद्रियों मन बुद्धि अहंकार को वश में कर लेने पर आनंद की अनुभूति करना।

ध्यान में उपलब्धि मिलने पर आनंद प्राप्त होना ।

आसन सिद्ध होने पर आनंद की अनुभूति करना।

धारण ध्यान समाधि सिद्ध होने पर आनंद को प्राप्त होना ।

धारणा ध्यान समाधि में संयम कर लेने पर जीवन में आनंद मय होना

 अपने आत्मा को परमात्मा में मिला देने पर मा आनंद की प्राप्ति करना

आनंद शरीर अंदर से अनुभूति होती है किसी बाहर वस्तुओं से आनंद नहीं प्राप्त किया जा सकता है आनंद केवल अंदर से आता है जिसे परमानंद के नाम से भी जानते हैं।


जीवन और संसार का सबसे बड़ा आनंद है 


जीवन का सबसे बड़ा आनंद तब प्राप्त होता है जब कोई व्यक्ति अपने जीव आत्मा को परमात्मा के साथ संयोग अर्थात योग कर देता है उनमें मिल जाता है तब उसे परम आनंद की अनुभूति प्राप्ति होता है जिसे जीवन का सबसे बड़ा आनंद भी कहते हैं यह आनंद योग के माध्यम से कोई भी व्यक्ति प्राप्त कर सकता है इसके अलावा बाकी कहीं अन्य वस्तुओं या फिर विषयों के माध्यम से आनंद को नहीं प्राप्त किया जा सकता क्योंकि विषयों और वस्तुओं से केवल सुख की अनुभूति की जा सकती है आनंद की नहीं आनंद केवल परमात्मा उस आत्मा के अंदर बैठे परमात्मा से आता है से आता है जिसे पर ब्रह्म ब्रह्मांड उत्पति करता कण कण में बसने वाले के नाम से भी जानते हैं

जीवन का सच्चा असली आनंद है।


संसार का प्रत्येक व्यक्ति असली और सच्चा आनंद विषयों और वस्तुओं से पाने में खोजता है कि उसे उसमें आनंद मिलेगा लेकिन उसे वस्तु को पाने के बाद भी उसे आनंद की प्राप्ति नहीं हो पाती और वह फिर अन्य वस्तु को पाने के लिए लग जाता है कि उसे उस वस्तु में आनंद खुशी मिले लेकिन उसे वहां पर भी वह खुशी सच्चा असली आनंद नहीं मिल पाता और उसका जीवन इसी प्रकार वस्तुओं को पाने में नष्ट हो जाता है और उसे सच्चा और असली आनंद कभी भी नहीं मिल पाता इसलिए आपको असली सच्चा आनंद के लिए वस्तुओं और विषयों को छोड़कर अपने भीतर बैठे परमात्मा को ढूंढना और उनसे अपने जीवआत्मा को उनके साथ मिला देने पर परम आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है यही संसार का सबसे सच्चा और असली आनंद है 

बाकी अन्य किसी भी वस्तु यह पैसे घर गाड़ी मान सम्मान किसी भी प्राकृतिक वस्तुओं से प्राप्त नहीं किया जा सकता केवल खुद के भीतर बैठे उस पर ब्रह्म परमात्मा से ही सच्चा आनंद प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि यह पूरा ब्रह्मांड उस परमात्मा से बना है और उनमें ही सब विलीन हो जाएगा इसलिए हर एक व्यक्ति को आनंद पाने के लिए अपने भीतर बैठे उस परमात्मा को योग के माध्यम से जान लेना और उनसे संपर्क कर लेने पर व्यक्ति को परम आनंद की अनुभूति होती है यही सच्चा और असली आनंद है।


आनंद कितने प्रकार का होता है


व्यक्ति को आनंद सुख दो प्रकार से प्राप्त होता है पहले विषयों के माध्यम अर्थात प्राकृतिक वस्तुओं द्वारा और दूसरा परमात्मा के द्वारा जिसे परमानंद के नाम से भी जाना जाता है विषयों के द्वारा जो हमें आनंद सुख प्राप्त होता है वह कुछ ही सीमित तक ही रहता है उसके बाद कुछ समय बाद वह नष्ट हो जाता है और फिर दूसरी वस्तुओं से सुख प्राप्त करने के लिए व्यक्ति लगा रहता है ऐसे ही प्राकृतिक और विषयों का सुख सीमित होता है और व्यक्ति को वह आनंद नहीं मिल पाता जिसे मिलने के बाद किसी अन्य सुख की चाह नहीं रह जाती है।

दूसरा परमानंद आनंद जिसे उस परमात्मा के संपर्क के दौरान उनमें स्थित होने पर व्यक्ति को परम आनंद की अनुभूति होती है और वह उसमें युगों युगों तक उस आनंद में स्थिर रहता है जिसे परम आनंद के नाम से भी पुकारा जाता है इस आनंद को प्राप्त होने के बाद किसी अन्य सुख की अभिलाषा खत्म हो जाती है और व्यक्ति का आत्मा तृप्त हो जाता है और उसका जीवन आनंद मय में हो जाता है और वह संसार से सदा के लिए मुक्त हो जाता है


सच्चा आनंद इस प्रकार मिल सकता है


कोई भी व्यक्ति सच्चा आनंद सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही प्राप्त कर सकता है क्योंकि जब तक आप सच्चा ज्ञान नहीं प्राप्त करेंगे तब तक आपको उस परम आनंद को नहीं प्राप्त कर सकते क्योंकि वह परम आनंद सच्चा ज्ञान के माध्यम से ही आप प्राप्त किया जा सकता हैं इसीलिए जो ज्ञान आपको उस परमात्मा के साथ मिलन करने का ज्ञान प्रदान करता हो वही ज्ञान आपको सच्चा आनंद को प्राप्त कर सकता है योग अष्टांग योग महर्षि पतंजलि द्वारा लिखित योग सूत्र के माध्यम से आप सच्चा आनंद को प्राप्त कर सकते हैं जब आप अपने शरीर मन बुद्धि पर नियंत्रण करते हुए अपने जीवात्मा को परमात्मा के साथ संयुक्त कर देंगे तब आपको सच्चा आनंद मिल जाएगा और आप उसमें स्थिर हो जाएंगे यही जीवन का सच्चा असली आनंद है

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जब साधक योग में आसान सिद्ध करता है योग में सिद्धि प्राप्त करता है तब उसे निम्न निम्न प्रकार के आनंद की अनुभूति होती रहती है और अंत में जाकर जब वह परमात्मा के साथ मिल जाता है तब उसे महा आनंद की अनुभूति प्राप्ति होती है।