भगवान, कृष्ण, हृदय में निवास,


इसमें कोई चोकने की बात नहीं है हमारे धर्म ग्रंथो उपनिषद भगवत गीता हर एक ग्रंथ में साफ-साफ शब्दों में लिखा गया है कि भगवान मनुष्य के शरीर में निवास करते हैं लेकिन इसका अधिकतर लोगों को ज्ञान नहीं है इसी कारण हमारे धर्म के लोग इन सब ज्ञान से वंचित है आज मैं आपको बताने वाला हूं कि वास्तव में भगवान शरीर में कहां पर रहते हैं पूरी जानकारी आप प्राप्त करेंगे।


मनुष्य के इस जगह पर रहते है विराजमान भगवान 


मनुष्य के शरीर के भीतर जीवात्मा के अंदर आनंदमय कोष के भीतर वास करते हैं परम ब्रह्म भगवान अर्थात मनुष्य के शरीर में स्थित हृदय कमल में निवास करते हैं भगवान भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं मैं प्रत्येक प्राणी के  शरीर में शुष्म रूप में हृदय में निवास करता हूं चाहे चींटी हो या हाथी हो या कोई मनुष्य हो हर एक जीव में मेरा निवास है हमारे ग्रंथो में भगवान को कण-कण में बसने वाले कहा जाता है


योग के अनुसार भगवान मनुष्य के हृदय में वास करते हैं



मनुष्य के शरीर के आकार का पांच प्रकार के शरीर भीतर स्थित होते है पहला शरीर को देखा जा सकता है परंतु ऐसे चार शुष्म शरीर को नहीं देखा जा सकता है 
  • अन्यमय कोश
  • प्राणमय कोश
  • मनोमय कोश
  • विज्ञानमय कोश 
  • आनंदमय कोश
अन्नमय कोश -शरीर के बाहरी अंग को अन्नमय कोश कहते हैं जिसे हर व्यक्ति देख सकता है व्यक्ति के आंख, नाक, पैर, इन सभी अंगो को अन्नमय कोश कहते है
 
प्राणमय कोश - इस कोश को हर कोई व्यक्ति नहीं देख सकता है यह कोश वायु का बना होता है जैसे हम वायु को नहीं देख सकते वैसे ही इस कोश को नहीं देखा जा सकता हां वायु को देखने वाली कोई मशीन हो तो इसे देख सकती है या कोई दृव्य दृष्टि जिसे मिली हो वही इसे देख सकता है ।

मनोमय कोश - यह कोश प्राणमय कोश से अधिक छोटा होता है इसे बड़े तपस्वी लोग ही देख सकते हैं यह बहुत ही सूक्ष्म वायु से भी अधिक शुष्म होता है यह कोश पूरे शरीर का कार्य करने वाला मन ही है मन को देखना बहुत कठिन बस इस कोश को महसूस कर सकते है।
 
विज्ञानमय कोश - इस कोश में व्यक्ति का ज्ञान विज्ञान सब कुछ इस कोश में समाहित होता है इसे कह सकते हैं मनुष्य का मेमोरी इस कोश में व्यक्ति के सारे कल्पनाएं ज्ञान विज्ञान जाकर स्टोर रहती है इसे अन्य साधारण व्यक्ति नहीं देख सकता है। यह मनोमय से अति अधिक छोटा सूक्ष्म होता है यह विद्युत से संचालित होता है जैसे कोई व्यक्ति विद्युत को नहीं देख सहता है उसी प्रकार इसे देखना बेहद कठिन है

आनंदमय कोश -  यह कोश चारों कोशो का मालिक है यह इन चारों से अत्यधिक छोटा सूक्ष्म है इसी को जीवात्मा कहते हैं व्यक्ति को जो खुशी आनंद और दुख की अनुभूति होती है सब आनंदमय कोश में ही होती है यह कोश इतना छोटा है जिससे कि हम या कोई भी यंत्र नहीं देख सकता इस कोश के भीतर परमात्मा ईश्वर निवास करते हैं इसी को भगवत गीता में बताया गया है कि प्रत्येक प्राणी के अंदर में निवास करता हूं क्योंकि जब व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है

 तब आनंदमय कोश और विज्ञानमय कोश और मनोमय कोष को धारण करके जीवात्मा शरीर से बाहर निकल जाता है जिसे आत्मा कहते हैं आत्मा और जीवात्मा एक अलग अलग हैं जीवात्मा के अंदर आत्मा निवास करता है जीव एक प्रकार की शरीर के आकार का आकृति होती है जिसमे आत्मा आकार प्रवेश करता है तब यह दोनों मिलकर जीवात्मा बन जाते हैं जीवात्मा को कभी भी अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि प्रत्येक जीवात्मा में आत्मा निवास करता है अगर आत्मा को जीवात्मा से निकाल दिया जाए तो जीवात्मा का कोई अस्तित्व नहीं होगा वह चल फिर नहीं सकता आत्मा जीवात्मा में निवास करती है तभी जीवात्मा एक जीव के रूप में विकसित होता है
 

निष्कर्ष


आपको हमने पूर्णतः बताया कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर परमात्मा कहां पर स्थित रहते हैं इसकी संपूर्ण जानकारी हमने आपको दे दी है ऐसी किसी भी जानकारी की तलाश में है आप तो आप हमें कमेंट करके अपनी सवाल पूछ सकते हैं