भूत प्रेत अदृश्य आत्माएं होती है
मनुष्य का शरीर 24 तत्वों से मिलकर बना होता है जिसमें 25 तत्व ईश्वर का होता है।
1. आत्मा परमात्मा: जिसे ईश्वर कहते है इसी से जीव की उत्पति होती है अर्थात यह न पुरुष है न स्त्री निर्विकार न इसका कोई आकार है अर्थात इसी से पुरुष स्त्री और पूरे ब्रह्माण्ड की उत्पति और होती है और अंत में उसमें समा जाता है
2. पुरुष: आत्मा( ईश्वर) + जीव(चेतना )मिलकर जीव आत्मा बताते है यही आपका असली रूप स्वरूप है और बात में इसमें आकर प्रकृति मिल जाती है जब हमें अहंकार आ ताजा है कि मैं सबसे अलग हु मैं हु जबकि वह ईश्वर से ही उत्पति हुआ है
अहम् ब्रह्मास्मि। इसका यही अर्थ होता है हमारी उत्पति ईश्वर से हुआ है हम कुछ है ही नहीं सब ईश्वर ही है केवल प्रकृति के मिलने से हम लोग मै हु कहते है। माया भी ईश्वर से ही बनी है बस यह पूरा ब्रह्माण्ड खेल है और कुछ नहीं,
3. प्रकृति: मूल प्रकृति, जो सभी भौतिक और सूक्ष्म तत्वों की जननी है। मतलब प्रकृति में _(भौतिक रूप भी है जिसे देख सकते है) _ (और सूक्ष्म तत्व भी है जिसे नहीं देखा जा सकता है)
1. (प्रकृति से उत्पन्न जिसे देख नहीं जा सकता है तत्व)
1 आत्मा ईश्वर: ( निर्विकार ,साकार जो माया से परे है)
प्रकृति माया
1. पुरुष या स्त्री )जो आप है असली रूप है
2. बुद्धि (महत्तत्व):
3. अहंकार:
4. मन:
पांच ज्ञानेंद्रियाँ (इंद्रियाँ जो ज्ञान ग्रहण करती हैं):
1. श्रोत्र (कान) - सुनने की क्षमता।
2. त्वक् (त्वचा) - स्पर्श की क्षमता।
3. चक्षु (आँखें) - देखने की क्षमता।
4. जिह्वा (जीभ) - स्वाद लेने की क्षमता।
5. घ्राण (नाक) - सूंघने की क्षमता।
पांच कर्मेंद्रियाँ (इंद्रियाँ जो कार्य करती हैं):
1. वाक् (वाणी) - बोलने की क्षमता।
2. पाणि (हाथ) - कार्य करने की क्षमता।
3. पाद (पैर) - चलने की क्षमता।
4. पायु (मलद्वार) - उत्सर्जन की क्षमता।
5. उपस्थ (जननांग) - प्रजनन और उत्सर्जन की क्षमता।
पांच तन्मात्राएँ (सूक्ष्म तत्व):
1. शब्द (ध्वनि) - श्रोत्र का आधार।
2. स्पर्श (स्पर्श) - त्वक् का आधार।
3. रूप (दृश्य) - चक्षु का आधार।
4. रस (स्वाद) - जिह्वा का आधार।
5. गंध (गंध) - घ्राण का आधार।
2. प्रकृति से उत्पन्न जिसे देखा जा सकता है तत्व)
पांच महाभूत (भौतिक तत्व ,जिसे देखा जा सकता है):
1. पृथ्वी (ठोसता) - शरीर की संरचना।
2. जल (द्रवता) - रक्त, लसीका आदि।
3. अग्नि (ऊष्मा) - पाचन और ऊर्जा।
4. वायु (गति) - श्वास और संचलन।
5. आकाश (अवकाश) - शरीर में रिक्त स्थान।
हमारे मृत्यु के समय पंचमहाभूत भौतिक तत्व पृथ्वी तत्व में विलीन हो जाते हैं अर्थात नष्ट हो जाते हैं लेकिन 19 +1 ईश्वर कुल 20 तत्व बचते हैं यही आत्मा जीवात्मा भूत प्रेत कहे जाते हैं यह अदृश्य होते हैं क्योंकि जो दिखाई देने वाली तत्व का बना शरीर होता है वह तत्व नष्ट हो चुका होता (मृत्यु) है तो केवल सूक्ष्म तत्व बचते हैं जिसे आंखें नहीं देख सकती उसी को हम भूत प्रेत कहते हैं कोई बुरी आत्मा होती है तो उसे हम भूत प्रेत रहते हैं अगर वह अच्छी आत्मा होती है तो उसे हम देवता देवी के नाम से पुकारते हैं
भूत प्रेत क्या होते हैं वास्तविक बतें असलियत
हमारी मृत्यु होने पर पांच महाभूत नष्ट हो जाते है लेकिन 20 तत्व नष्ट नहीं होते है उसमें नाक, आंखे ,जीभ ,त्वचा कान ,वाणी ,हाथ ,पैर ,ध्वनि ,स्पर्श ,रूप ,गंध, स्वाद यह सब सूक्ष्म शरीर के रूप में होते है बस दिखाई नहीं देते है ऐ भी खाते देखते बोलते है केवल सूक्ष्म रूप में इनसे बात भी आप कर सकते है
केवल आपको इनसे कैसे बात करनी आपको सीखना पड़ता है जो लोग तांत्रिक ओझा होते वे लोग इनसे बाते कर लेते है इनको पकड़ लेते है तांत्रिक लोग खुद नहीं कुछ करते एक आत्मा को दूसरे आत्मा से बांध देते है उनको उन्हीं से मरवात है भी है और दूसरे को परेशान भी करते है
आपने देखा होगा कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तब भी उसे भोजन कराया जाता है भोजन प्रेत खाता है लेकिन भोजन खत्म नहीं होता है और भूत का पेट भर जाता है ऐसा इसी लिए होता है वह सूक्ष्म रूप में वह भोजन को पा लेते है उसका रस वे ले लेते है लेकिन अन्न पंच महा भूत से बने होते जिसे पचाने के लिए उनके पास कोई स्थूल शरीर नहीं होता है इसी लिए भोजन खत्म नहीं होता है और उनका पेट भर जाता है
आज आपने जाता की भूत प्रेत वास्तव में क्या होते है वह भी प्रमाण के साथ और कुछ भी जानना है तो आप हमसे संपर्क कर सकते है