क्रोध आने के कारण: क्रोध एक ऐसी भावना है जो हर किसी के जीवन में कभी न कभी प्रकट होती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि क्रोध आने के कारण क्या हैं? भगवद्गीता और योग शास्त्र इस प्रश्न का जवाब गहराई से देते हैं। ये प्राचीन ग्रंथ बताते हैं 


कि क्रोध केवल एक भावना नहीं, बल्कि हमारे मन और आत्मा की गहरी अवस्था का परिणाम है। इस आर्टिकल में हम "क्रोध आने के कारण" को गीता और योग के नजरिए से समझेंगे और यह भी जानेंगे कि इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता इस आर्टिकल को पढ़ लेने के बाद आप छुटकियों में अपने क्रोध गुस्से को काबू कर लेंगे है


क्रोध आने के कारण: गीता का दृष्टिकोण प्रकृति के कारण

भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को क्रोध के मूल कारणों के बारे में बताते हैं। आइए इन कारणों को विस्तार से देखें:


1. अनियंत्रित इच्छाएँ (कामना)

गीता के अध्याय 2, श्लोक 62-63 में कहा गया है कि जब मनुष्य इंद्रियों के सुखों के बारे में सोचता है, तो आसक्ति पैदा होती है। आसक्ति से कामना जन्म लेती है, और जब यह कामना पूरी नहीं होती, तो क्रोध उत्पन्न होता है।

उदाहरण: अगर आप किसी चीज की उम्मीद करते हैं और वह पूरी नहीं होती, तो क्रोध स्वाभाविक रूप से उभरता है।
यह क्रोध आने के कारणों में सबसे प्रमुख है।

अहंकार का प्रभाव

गीता के अध्याय 16 में "आसुरी गुणों" की चर्चा में अहंकार को क्रोध का एक बड़ा कारण बताया गया है। जब कोई व्यक्ति अपने सम्मान या स्थिति को ठेस पहुँचता हुआ महसूस करता है, तो क्रोध जागृत हो जाता है।

प्रश्न: क्या आपने कभी अहंकार के कारण क्रोध महसूस किया है?

3. राग और द्वेष

अध्याय 3, श्लोक 37 में श्रीकृष्ण कहते हैं कि काम और क्रोध रजोगुण से उत्पन्न होते हैं। राग (अत्यधिक लगाव) और द्वेष (नफरत) क्रोध को जन्म देते हैं। अगर हमें कोई प्रिय चीज छिन जाए या कोई अप्रिय चीज मिले, तो क्रोध का उदय होता है।

तमो गुण की वृद्धि 

ईश्वर हमे तीन गुणों से सींचते है जिसमे आखिरी (तमो गुण) में आलस निद्रा अज्ञान क्रोध घृणा डर यह तमोगुण में के लक्षण होती है तभी गुस्सा अधिक आने लगता है 

4. प्रकृति के कारण 

हमारा शरीर प्रकृति के 24 तत्वों से मिलकर बना और इस तत्वों में जैसे काम, {सेक्स की भावना} आलश, निद्रा, डर, उत्पन होते है वैसे ही क्रोध होता है बस यही कारण गुस्सा आने का ।।


अज्ञानता (अविद्या)

योग शास्त्रों में पतंजलि कहते हैं कि अज्ञानता सभी दुखों और क्लेशों का मूल है। जब हम आत्मा और शरीर के बीच भेद नहीं समझते, तो क्रोध जैसी भावनाएँ हावी हो जाती हैं। गीता भी इस बात को दोहराती है।

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क्रोध को कैसे नियंत्रित करें। चुटकियों में


गीता और योग शास्त्र न केवल क्रोध आने के कारण बताते हैं, बल्कि इसके समाधान भी बताए गए है : 


प्रकृति के कारण: हमारा शरीर 24 तत्वों से मिलकर बना है जिसमें मूल प्रकृति (1) + महत्तत्व (1) + अहंकार (1) + मन (1) + 5 ज्ञानेंद्रियाँ + 5 कर्मेंद्रियाँ + 5 तन्मात्राएँ + 5 महाभूत = 24 तत्व।

 इसके अतिरिक्त पुरुष (आत्मा) 25 वाँ तत्व है, जो प्रकृति से अलग और शुद्ध चेतना आप है। जिसमें कोई विकार भावना नहीं आप शांत स्थिर वाले सुधि चेतना है जिसमें कुछ नहीं है।

यह बात जब आप जान लेते है में एक आत्म हु और यह क्रोध प्रकृति के स्वभाव के कारण उत्पन हो रहा रहा है तो आप अपने गुस्से पर काबू कर लेते है क्योंकि गुस्सा आप नहीं करते यह गुस्सा प्रकृति के गुणों के कारण आपमें उत्पन्न हो जाते है इसे केवल आप ही ठीक कर सकते है।



ध्यान योग: अध्याय 6 में श्रीकृष्ण कहते हैं कि ध्यान से मन को शांत और नियंत्रित किया जा सकता है।

कर्मयोग: अपने कर्तव्यों को बिना फल की इच्छा के करें, जिससे क्रोध का मूल कारण ही खत्म हो जाए।

ज्ञान और भक्ति: आत्मा का ज्ञान और ईश्वर पर विश्वास क्रोध को शांत करने में मदद करते हैं।


निष्कर्ष


क्रोध आने के कारण हमारे भीतर की अशांति, इच्छाएँ, और अज्ञान से जुड़े हैं। भगवद्गीता और योग शास्त्र हमें यह सिखाते हैं कि क्रोध को समझने और उस पर काबू पाने के लिए आत्म-जागरूकता और संयम जरूरी है। 

अगली बार जब आपको क्रोध आए, तो एक पल रुकें और सोचें—यह किस कामना या अहंकार से  प्रकृति उपजा  है? इस तरह आप न केवल क्रोध के कारणों को समझ पाएँगे, बल्कि इसे नियंत्रित भी कर सकेंगे।