भगवत गीता के अनुसार पाप कर्मों से मुक्ति का तारिक, पापों से मुक्ति,पाप कर्म से मुक्ति कैसे पाए,पाप का से छुटकारा,


व्यक्ति अपने जीवन में पाप कर्म कभी न कभी करता ही करता है लेकिन वर्तमान समय में लोग पाप कर्म अधिक करते जा रहे हैं और उन्हें इसका भय भी नहीं है लेकिन जो लोग अपने पाप कर्म से डरते हैं उनसे बचना चाहते हैं तो वे ही लोग अपने पाप कर्म से मुक्ति प्राप्त करने की इच्छा करते हैं उनसे मुक्त होना चाहते हैं और वे ही लोग पाप कर्म से मुक्त हो पाते  हैं बाकी अन्य लोगों को तो ना पाप कर्म से और ना पुण्य कर्म से मतलब ही नहीं होता है ये लोग कर्म करते जाते हैं और अंत में जाकर जब उन्हें कष्ट मिलता है तो वह घबरा जाते हैं कि हमें यह दुख क्यों मिल रहा है लेकिन जब आप दूसरों को दुख देते हैं उनको मारकर खाते हैं लोगों से अभद्र भाषा करते हैं बड़ों का अपमान करते हैं उन्हें दुख देते हैं तो आपको कैसे दुख मिलेगा वैसे ही जब आप दूसरों को दुख देते हैं तो अंत में जाकर आपको भी दुख मिलता है यही पाप पुण्य कर्म का हिसाब होता है पाप पुण्य का कर्म केवल व्यक्ति ही भोक्ता है यह जानवरों पशुओं पर लागू नहीं होता है केवल मनुष्य जाति पर ही यह लागू होता है


इसलिए आप इसे यूं ही ना ले यह बहुत बड़ी बात है जिस व्यक्ति के जीवन में जो भी पाप कर्म हो गए हैं और वह उससे मुक्त होना चाहता है तो आप श्रीमद् भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं बताया है कि कैसे व्यक्ति अपने पाप कर्म से मुक्त हो सकता है और हम आप को बताएंगे कि कैसे आप अपनी पाप कर्म से मुक्ति पाने के लिए क्या करेंगे हम आपको वह तरीका बताएंगे जिसके द्वारा आप अपने पाप कर्म से मुक्त हो जाएंगे और अब आप जो कर्म करेंगे उसका आपको ना पाप लगेगा ना पुण्य लगेगा आप कर्म बंधन से मुक्त होकर कर्म करेंगे जिस प्रकार भगवान श्री कृष्णा संपूर्ण कर्म करते हुए भी एक योगी थे उनको ना पाप लगता थे न उन्हें पुण्य कर्म लगते थे ऐसा क्यों होता था और आप जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने जन्म से लेकर मृत्यु तक कितने लोगों को मारा है और राक्षसों का अंत किया है कितने सैनिकों की हत्या हुई है लेकिन फिर भी उन्होंने एक भी पाप न पुण्य कर्म किए हैं ऐसा क्यों होता है आज आप स्वयं ही जान जाएंगे चलिए जानते हैं कि कैसे पाप कर्म से मुक्त होया जाता है।


भगवत गीता के अनुसार पाप कर्मों से मुक्ति पाने के 3 प्रमुख तरीके बताए गए हैं


भगवत गीता एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें स्वयं भगवान मनुष्यों को कैसे अपना जीवन जीना है कैसे व्यक्ति अपने जीवन से मुक्ति प्राप्त कर सकता है कैसे अपने जीवन को शांति पूर्वक जी सकता है और कैसे कर्म करें इसका संक्षिप्त ज्ञान भगवान द्वारा अर्जुन को बताया गया है जिसके माध्यम से इस संसार के प्रत्येक व्यक्ति भगवान के बताए गए ज्ञान का अनुसरण करके इनका लाभ उठाते हैं और आज आप यही जानेंगे कि कैसे पाप कर्मों से मुक्ति पाया जा सकता है भगवत गीता में पाप कर्मों से मुक्ति पाने के मुख्य 4 उपाय बताए गए जिसमे पहला निष्काम कर्म योग दूसरा भक्ति योग तीसरा कर्म योग और पाप पुण्य इन तीन तरीकों से आप अपने पाप कर्मों को सदा के लिए मिटा सकते हैं और आप एक पाप मुक्त हो जाएंगे इन 4 तरीकों से व्यक्ति पाप पुण्य इन दोनों बंधनों से मुक्त होकर निष्पाप होकर परमात्मा को प्राप्त करके सदा के लिए मुक्ति प्राप्त कर लेता है


1. भक्ति योग 


भक्ति योग के द्वारा व्यक्ति अपने पाप कर्मों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है इसके लिए व्यक्ति भगवान को खुद को संपूर्ण करते हुए अपने सभी कर्म को ईश्वर को समर्पित करके उनके बताए गए मार्ग पर चलने से भगवान व्यक्ति के सभी पाप कर्म और पुण्य कर्म नष्ट कर देते हैं जिससे व्यक्ति निष्पाप हो जाता है उसके पास ना पाप कर्म बचते हैं ना पुण्य कर्म बचते हैं वह एक निष्पाप व्यक्ति बन जाता है जिससे वह इस बंधन मय संसार से मुक्ति प्राप्त करता है 

2. निस्काम कर्म योग 


निष्काम कर्म योग द्वारा व्यक्ति अपने सभी पाप कर्मों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है इसके लिए चाहिए कि व्यक्ति कर्म इस प्रकार करें व्यक्ति का जो धर्म है उस धर्म को पूरा करने के लिए अपने सभी कर्म करें ना की फल पाने के लिए अपने इच्छाओं को पूरा करने के लिए कर्म करें जो व्यक्ति अपने धर्म का पालन करने के लिए कर्म करता है केवल वही व्यक्ति अपने पाप कर्म से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं जो व्यक्ति इच्छाओं को पूरा करने के लिए इंद्रियों को भोगों के लिए कर्म करते हैं वे लोग पाप कर्म से नहीं छूट सकते हैं केवल धर्म का पालन करने से ही व्यक्ति पाप कर्मों से मुक्त हो सकता है


3. कर्म योग द्वारा 


 व्यक्ति कर्म योग द्वारा अपना जीवन जिए तो वह पाप कर्मों से मुक्त हो सकता है इसके लिए व्यक्ति कर्म योग का सही ज्ञान प्राप्त करके अपने धर्म का निष्काम कर्म योग विधि द्वारा केवल धर्म पालन के लिए कर्म करने से पाप कर्म करने पर भी व्यक्ति को पाप नहीं लगते हैं और वह जब पुण्य कर्म करता है तब उसका भी उसे पुण्य कर्म का फल उसे नहीं मिलता वह दोनों फलों से मुक्त रहता है जिससे वह सुख शांति आनंद को प्राप्त होता है और वह एक योगी की भाती अपना जीवन व्यतीत करता है जिस प्रकार भगवान श्री कृष्णा जन्म से लेकर मृत्यु तक केवल धर्म के मार्ग पर चलकर कर्म करते हैं उन्हें ना पाप कर्म लगते न पुण्य कर्म लगते है वे सदा स्थित प्रज्ञा की भांति कर्म करते गए और अपना जीवन जिए इस प्रकार कर्म योग व्यक्ति को कर्म करना सिखाता है जिससे व्यक्ति कर्म फलों से बचता है जिससे वह संसार में बंधता नहीं वह हमेशा के लिए मुक्त ही रहता है जिससे उसे मुक्ति स्वम मिल जाती है 


4. पाप और पुण्य

पाप कर्म से मुक्ति पाने के लिए आप अपने जीवन में पुण्य कर्म करना आरंभ करें आपने जितना पाप कर्म किया है उतना आपको पुण्य कर्म करना पड़ेगा तभी आपके पाप कर्म से मुक्ति हो सकती है जब आप अपने पाप कर्म को मिटाने के लिए पुण्य कर्म करने लगते हैं तब पाप पुण्य कर्म बराबर हो जाता तो पाप कर्म मिट जाते हैं जिससे आपको पाप कर्म से मुक्ति प्राप्त हो जाती है और जब आप अधिक पुण्य  कर्म करते हैं तो आपके खाते में पुण्य कर्म अधिक हो जाते हैं तब आपको स्वर्ग की प्राप्ति होती है अन्यथा पाप कर्म के अधिक होने से नर्क की प्राप्ति होती है।



श्रीमद् भागवत गीता के बताए गए शब्दों को पढ़ना बहुत आसान है लेकिन उसे समझाना बहुत कठिन माना जाता है मुझे उम्मीद है कि आपको अभी भी पूरी तरह यह बातें आपको समझ में नहीं आई होगी इसलिए आपको हम इसे और आसान तरीके से समझाने का प्रयास करते हैं पाप कर्म से कैसे मुक्त मिल सकती है

भक्ति योग
 
भक्ति योग का अर्थ यह है कि भक्ति में व्यक्ति अपने जीवन को परमात्मा के चरणों में समर्पित कर देता है और अपने समस्त कर्मों को भी उनमें अर्पण कर देता है जिससे व्यक्ति का जीवन और कर्म दोनों भगवान के हो जाते हैं जिसके कारण भगवान अपने भक्त के सभी पाप पुण्य कर्म अपने शक्ति से नष्ट कर देते हैं जिससे व्यक्ति निष्पाप बन जाता है जैसे एक मां के बेटे के शरीर पर कीचड़ लगा होता है और वह लड़का रोता बिलखता मां के पास जाता है और मां उसके शरीर से सभी कीचड़ गंदगी को धोकर एक निहाल खूबसूरत अच्छा बना देती है इस प्रकार जब आप खुद को भगवान को समर्पित कर देते हैं आपके सभी पाप पुण्य कर्म को भगवान नष्ट करके आपको एक निष्पाप बना देते हैं यही भक्ति योग है यही गीता का सार है 


मुख्य बातें। आपने जो वर्तमान समय में पाप कर्म किए हैं अगर आप उसे नष्ट करना चाहते हैं उससे मुक्ति प्राप्त करना चाहते हैं आप अभी भगवान विष्णु या कृष्णा या भगवान राम इन तीनों में से किसी एक को चुनकर आप भक्ति योग के द्वारा उनको अपने सभी कर्मों को सौंप दें जिससे वे आपके जितने भी किए गए कर्म होंगे पाप पुण्य इन दोनों से आपको मुक्त कर देंगे


निस्काम योग और कर्म योग  निष्काम कर्म योग और कर्म योग यह दोनों व्यक्ति के सभी पाप पुण्य कर्म को नष्ट नहीं करते हैं इसके अलावा जब व्यक्ति निष्काम कर्म योग और कर्म योग द्वारा अपना जीवन जीने लगता है तो व्यक्ति चाहे पाप कर्म कितना भी करें या चाहे कितना भी पुण्य कर्म करें उसमे वह बंधता नहीं है जो कर्म करता है वह कर्म फल अवश्य मिलता है उससे वह बंधता नहीं है उसका अगला जन्म नहीं होता है कर्म तो करता है फल भी मिलता है लेकिन उसके खाते में कोई भी पाप पुण्य कर्म नहीं लिखे जाते हैं केवल यही काम निष्काम कर्म योग और कर्म योग करता है


और बाकी जो आपने पहले पाप कर्म किए हैं उनको यह मिटाने में असमर्थ है उनको मिटाने के लिए आपके पास केवल दो मार्ग हैं पहला भक्ति योग जो ऊपर हमने आपको बता दिया है और दूसरा है पुण्य और पाप कर्म इन दोनों से पाप कर्म से मुक्ति प्राप्त किया जा सकता है पहले आप पाप पुण्य कर्म को समझे कि यह क्या है इसके बाद आप स्वयं ही जान जाएंगे कि पाप कर्म से कैसे मुक्त होना है


भगवत गीता के अनुसार पाप कर्म से मुक्त होने का तरीका


पाप कर्म से मुक्ति प्राप्त करने के लिए आपको सबसे पहले पाप पुण्य कर्म को समझाना पड़ेगा जिसके बाद आप स्वयं ही अपने पाप कर्म से मुक्त हो जाएंगे देखिए एक ही कर्म पाप कर्म होते हैं और एक ही कर्म पुण्य होते हैं जैसे किसी व्यक्ति को लूटने चोरी करने उसका धन लेने के लिए उसे मार डालना पाप होता है वही उसी व्यक्ति को किसी का बलात्कार उसने किया हो या किसी को उसने अपने स्वार्थ के लिए मार रहा हो और आप उस व्यक्ति को बचाने के लिए व्यक्ति को मार देते हैं तो यह पुण्य बन जाता है मतलब की एक ही कर्म पाप और पुण्य है 


इसलिए आप अपने पाप कर्म से मुक्ति पाने के लिए पुण्य कर्म में वृद्धि करें जिससे आपके सभी पाप कर्म नष्ट हो जाएंगे जिससे पाप कर्म  से मुक्त हो जाएंगे ।


पाप कर्म को पुण्य कर्म करने के लिए सबसे पहले जो आपने पाप कर्म किए हैं उन्हें रोक कर अब आप अपने जीवन में अच्छे कर्म करना शुरू करें। 


जैसे बड़ों की आज्ञा मानना पिता की आज्ञा मानना लोगों से अच्छी बातें करना, लोगों को भिक्षा देना, माता के आज्ञा का पालन करना, लोगों से अच्छे मीठी बातें करना, भोजन करते समय अन्य दान करना, सूर्य को नमस्कार करना ,लोगों को प्रणाम करना, इन सब से पुण्य कर्म बनते हैं और भूखे को खाना खिलाना ,प्यासे को पानी पिलाना, यज्ञ करना। यज्ञ करना सबसे बड़ा पुण्य कर्म माना जाता है इसे एक दो बार कर लेंगे तो आपके समस्त पाप कर्म नष्ट हो जाएंगे यज्ञ कर्म का बेहद ही बड़ा दर्जा प्राप्त है अगर आप अधिक पाप कर्म किए हैं तो आप अपने जीवन में कोई यज्ञ करवा दें भोजन खिलाना भगवान के नाम पर यज्ञ करने से व्यक्ति पाप कर्मों से मुक्त हो जाता है 


यह सबसे अच्छा तरीका है पाप कर्म को पुण्य कर्म में बदल देना ऐसा अब कोई तरीका नहीं है जो हम आपको बताएं कि पाप कर्म को कैसे नष्ट करना है केवल यह दो तरीके हैं पहले भक्ति योग और दूसरा पाप कर्म को पूर्ण कर्म में बदल देना बाकी निष्काम कर्म करने से आपको वर्तमान समय में कर्म बंधन में नहीं बंधते हैं आप जो भी कर्म करेंगे निष्काम भाव से ना पाप होंगे ना पुण्य होंगे और आप उससे बच सकते हैं और बात आती है कि जो आपने कर्म पहले पाप कर्म कर चुके हैं उससे बचने के लिए आप इन दो तरीकों से अपने पाप कर्म से बचा सकते हैं बस यही है भगवत गीता के अनुसार पाप कर्मों से मुक्ति प्राप्त करने का तरीका।


निष्कर्ष : 


आज आपने देखा कि कैसे व्यक्ति अपने पाप कर्म से मुक्ति प्राप्त कर सकता है पाप कर्म से मुक्ति प्राप्त करने के लिए दो तरीके प्रमुख हैं पहले भक्ति योग दूसरा पाप कर्म पुण्य कर्म में बदल देना जिससे पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं और पाप कर्म से व्यक्ति मुक्त हो जाता है बाकी अन्य ऐसा कोई भी रास्ता नहीं है जिसके द्वारा आप पाप कर्मों से छूट जाए क्योंकि यह कर्म किसी के सोचने या इच्छा करने से नहीं बदलने वाले हैं अगर आप वर्तमान समय में कर्म कर रहे हैं तो आप अभी से निष्काम कर्म योग द्वारा कर्म करना शुरू करें जैसे अभी आप जो कर्म कर रहे होंगे पाप पुण्य उससे आप बच सकते हैं अन्यथा आप पाप पुण्य कर्म दोनों से बंधते रहेंगे ।


और अंत में जाकर आप उनसे पीछा छुड़ाने के लिए केवल आपके पास भक्ति योग एक ही रास्ता बचेगा उसके बाद आप अपने पाप कर्म को पुण्य कर्म बदल भी नहीं सकते क्योंकि आपका आयु नष्ट होने वाला होगा जो व्यक्ति शुरू में पाप कर्म को नष्ट करना चाहता है उन्हें कर्म से तो वह कर सकते हैं लेकिन जिनकी आयु हो चुकी है वह केवल भक्ति योग द्वारा ही अपने पाप कर्म से मुक्त सकते हैं आज आपने जाना कि कैसे व्यक्ति अपने पाप कर्मों से मुक्त हो सकता है अगर आपको हमारी बातें पूरी तरह समझ में आ गई है तो आप हमें कमेंट में जरूर बताएं जिससे और भी हम आपको आसान शब्दों में समझाने का प्रयास करेंगे जिससे आप अपने जीवन को आसानी  आनंद से जी सके ! आपका दिन शुभ हो । आपका धन्यवाद।