जिनको कोई बीमारी है जो हर एक प्रकार से उसे ठीक करने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन ठीक नहीं हो रही वह बीमारी बार-बार आ जा रही है कितनी ही दवाइयां करने के बावजूद भी वह बीमारी ठीक नहीं हो रही हर एक दवाइयां उसके ऊपर से बे असर हो रही है तो ऐसे बीमारियों को असाध्य रोग नाशक मंत्र के द्वारा ठीक किया जाता है इन सब बीमारियो का निदान के लिए ऐसे रोग नाशक मंत्र लाए हैं जिसके द्वारा आप इन सभी बीमारियों को आसानी से दूर कर पाएंगे इन मत्रों को जितना हो सके पहले सिद्ध कर ले उसके बाद ही विधि अनुसार प्रयोग करने पर लाभ मिलते हैं
क्योंकि कोई भी मंत्र हो बिना सिद्ध किए अपना असर नहीं दिखता है अथवा किसी ने मंत्र सिद्ध किया हो जो असाध्य रोग नाशक मंत्र से रोग को ठीक करता हो उस व्यक्ति के पास जाकर उस व्यक्ति को आप ठीक करा सकते हैं या आप स्वयं इस मंत्र को किसी गुरु की सहायता से सिद्ध कर सकते हैं और आप दूसरे को इस मंत्र से ठीक कर सकते हैं
जो मंत्र बता रहे हैं यह मंत्र छोटे और सरल है जिनका उच्चारण करने में आपको कोई समस्या ना आए और आपको आसानी से याद हो जाए और आपको अधिक समय ना लगे इसका हमने बेहद ध्यान रखा है और इनका उच्चारण करना आसान है और यह बेहद ही शक्तिशाली मंत्र है जो किसी भी प्रकार के बीमारी हो उन सभी को ठीक कर देते हैं
मंत्र को सिद्ध करने का तरीका
जिस मंत्र को सिद्ध करने के लिए नियम है उन्हें आप पहले सिद्ध कर ले उसके बाद प्रयोग में लाएं और जो मंत्र सिद्ध करने के लिए नहीं बताया गया है केवल मंत्र जाप से ही ठीक करता हो उसे आप विधि अनुसार उच्चारण करने जाप करने से ही बीमारी को आप आसानी से ठीक करने का प्रयास करें ऐसे मंत्र को सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
पहला : जो मंत्र सिद्ध करने पर काम करते हो मंत्र को आप किसी ऐसे गुरु को दिखाएं जो मंत्र झाड़ता हो मंत्र से लोगों को ठीक करता हो उसके पास इस मंत्र को ले जाकर उनके द्वारा आप इस मंत्र को सिद्ध आसानी से कुछ ही समय में कर सकते हैं क्योंकि एक गुरु से मंत्र को सिद्ध करना आसान होता है भले ही आप उस मंत्र का अच्छे से उच्चारण ही क्यों ना करें लेकिन वह गुरु आपको मंत्र को बिना अधिक समय लगाएं जागृत करा देगा ।
दूसरा : मंत्र को श्यम सिद्ध करने के लिए आपको उस मंत्र को विधि अनुसार नियम से जाप करना होगा जाप करते समय किसी भी प्रकार की गलतियां आपको नहीं करनी है हर एक मंत्र का एक अपना नियम तरीका होता है इस नियम के अनुसार मंत्र का जाप करने से मंत्र सिद्ध होता है इसका आप विशेष ध्यान रखें स्वयं से मंत्र सिद्ध करने पर गलतियां होने पर बहुत सी समस्याएं भी आपको देखने को मिल सकती है क्योंकि हर एक मंत्र में शक्तियां कार्य करती हैं इसी कारण हर एक मंत्र को किसी गुरु से सीखना आसान होता है खुद से मंत्र सीखना खतरों का काम होता है इसका आप विशेष ध्यान रखें।
तीसरा : जो व्यक्ति किसी मंत्र को पहले से सिद्ध कर लिया है और इस मंत्र को थोड़ी आसानी से सिद्ध कर सकता है क्योंकि सिद्ध करने के बाद दूसरा मंत्र सिद्ध करने में थोड़ी आसानी होती है उन लोगों के लिए इस मंत्र को सिद्ध करना आसान है वे इस मंत्र का विधि अनुसार जब करते हुए मंत्र को सिद्ध कर सकते हैं और असाध्य रोग को कुछ ही समय में दूर कर सकते हैं
रोग नाशक मंत्र
मंत्र : ॐ घट घट बैठी गौराव फेरत आवे हाथ। ॐ श्री श्रीं श्रीं शब्द सांचा फुरो वाचा।
विधि : किसी को भयंकर रोग हो तो इस मंत्र को पढ़ते हुए रोगी के शरीर पर 7 बार हाथ फेरने से प्रकोप शान्त होता है। यह प्रयोग सात दिन तक करना चाहिए।
असाध्य रोगनाशक मंत्र
मंत्र : ॐ ह्लीं ह्लीं क्ली क्लीं काली कंकाली। महाकाली स्लखफरवाली अमुकस्य अमुक व्याधि नाशय नाशय शमनय स्वाहा।
विधि : उक्त मंत्र को किसी शुभ दिन ग्यारह सौ बार जप करके सिद्ध कर लें। जिस रोग में कोई औषधि काम न कर रही हो और रोगी मरणासतन्न हो तो उक्त मंत्र से तीन दिनों तक रोगी को एक सौ आठ बार मन्त्रोच्चारण करते हुए सिद्ध जल से झाड़ना चाहिए। इससे असाध्य रोग शांत हो जाता हैं।
नेत्र रोग नाशक मंत्र
मंत्र : ॐ अगाली बगाली अवाल पताल गर्द मर्द अदार कटार फट् फट् उत कर ॐ हुं हुं ठः ठ:।
विधि : इस मंत्र को पहले किसी शुभ रविवार या मंगलवार को एक सौ आठ बार जप करके सिद्ध कर लें। फिर नेत्ररोगी को इकतीस बार झाड़ा देने से नेत्ररोग ठीक हो जाता है।
पसलीदर्द- नाशक मंत्र
मंत्र : मंदिर के निकारे सुरहा गाय। गाय के पेट में बछड़ा। बच्छा के पेट में कलेजा। कलेजा के पेट में डब इवकर उमा बढ़े। दुहाई लोना चमारी की।
विधि : होली, दीपावली या ग्रहणकाल में लोबान जलाकर इस मंत्र को दस माला जप कर सिद्ध कर लें। फिर प्रयोग करते समय एक किलो लकड़ी और उंगली भर सात तिनके लेकर इकतीस बार मंत्र का उच्चारण करते हुए झाड़ा देने से पसली दर्द, पसली चलना ठीक हो जाता है।
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आंव रोगनाशक मंत्र
मंत्र : झमकरि झमकरि झमकरि भूरिखण्डा विखंडा तो धूमकरि घूसघुमाइया हे स्फटिकेर मुंडिमूल करिमरल भावह ह्ानुकिक अति वड् भिड़िऐ ऐ वीर सो भट संभवे मरमहा धर्मेर आरा पेट समान बाप खान भूमि गमने न छाडि दे दान विभात् खानि सहोदर साकी माथेर हाथ बाड़ाइलिकानाजूम करि रत्नाकर समुद्रे दिले भाषाइया वात वात चाप धूप खाओ अवतार कहे मोर महि मड़ल भरकर एकंधे था किया पर कंधे पड़े मोरे बोले आसिवि मोर बोले चालिवि मोर बोले जावि क्री कारे हांड़ियां जावि महाकालि आज्ञा।
विधि : उक्त मन्त्र को सात बार उच्चारित करते हुए रोगी को सिर से पैर तक चुटकी बजाते हुए झाड़ा दें। तीन-चार दिन के नियमित प्रयोग से रोगी स्वस्थ हो जाता है।
कान दर्द-नाशक मंत्र
मंत्र : ॐ कनक प्रहार। धंधर द्वारा प्रवेश कर डाल डारापात झार झारा मार मार, हुंकार, हुंकार। शब्द सांचा, पिण्ड कांचा। ॐ क्री क्रीं।
विधि : इस मंत्र को पहले किसी शुभ दिन दस माला जप करके सिद्ध कर लें। फिर प्रयोग करते समय सांप की बांबी की मिट्टी को इक्कीस बार अभिमन्त्रित कर पुन: सात बार मंत्रजप करके रोगी व्यक्ति के कान से वह मिट्टी लगाने से दर्द मिट जाता है
शरीर दर्दनाशक रोग मंत्र
मंत्र: लखकर फरा उन हरदी नीलगर्क शुद्ध जहां।
विधि : उक्त मन्त्र को दही व पीली मिट्टी के मिश्रण से एक सो आठ बार भोजपपत्र या सादे कागज पर लिखकर सिद्ध कर लें। फिर प्रयोग करते समय पीली मिट्टी के बराबर वजन का गुड़ बच्चों में बाँट दें तो केसा भी शरीरदर्द क्यों न हो, दूर हो जाता हैं।
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कमर दर्दनाशक मंत्र
मंत्र : चलता जाय उछलता जाय भस्म करंता डह डह जाय सिद्ध गुरु की आन महादेव की शान शब्द सांचा, पिण्ड कांचा, फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।
विधि : इस मंत्र को पहले एक सो आठ बार जप करके सिद्ध कर लें। फिर रोगी के सिर से पैर तक नापकर काला धागा लेकर उसे इकतीस बार मंत्र से अभिमन्त्रित कर रोगी के कमर में बांधने से दर्द दूर हो जाता है।
अण्डकोष वृद्धिनाशक मंत्र
मंत्र : ॐ नमो आदेश गुरु का जैसे कैलेहु रामचन्द्र कबूत औसई करहु राघ बिन कबूत पवनपूत धाऊ हर हर रावण कूट भिरावन श्रवई अण्ड खेतहि श्रवई अण्ड अण्ड, तिहेड खेतहि श्रवई बाजं मर्म श्रवई स्त्री खीलहि श्रवई शाप हर हर जंबीर हर जंबीर हर हर हर।
विधि: इस मंत्र का इकतीस बार उच्चारण करते हुए अण्डकोष को सहलाते हुए फूँक मारते जायँ। कुछ दिन के प्रयोग से रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है।
दाँतपीड़ा- नाशक मंत्र
मंत्र : ॐ नमो आदेश गुरु को वन में ब्याई अंजनी जिन जाया हनुमंत कीड़ा मकूड़ा माकड़ा ये तीनों करे भस्मंत गुरु गोरख की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।
विधि : होली-दीपावली की रात में या ग्रहणकाल में इस मंत्र को दो हजार सात बार जप करके सिद्ध कर लें तथा इतनी ही आहुति देने से मंत्रसिद्ध हो जाता है। फिर प्रयोग करते समय शीशम की टहनी से इकतीस बार झाडा देने से दाँत की पीड़ा दूर हो जाती है।
पीलिया- रोगनाशक मंत्र
मंत्र : ॐ नमो वीर बैताल असराल, नारसिंह देव तुषादि पीलिया कूं मिटाती। कारै झारे पीलिया रहे न नेक निशान। जो कहीं रह जाय तो हनुमंत की आन मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति, फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।
विधि : इस मंत्र को हनुमान जी की प्रतिमा के सामने धूप-दीप जलाकर इक्कीस दिनों तक एक हजार मंत्र प्रतिदिन जप करके सिद्ध कर लें। फिर प्रयोग करते समय पीलिया के रोगी को सामने बैठाकर कांसे की कटोरी में तेल भरकर रोगी के सिर पर रखें और हाथ में कुशा लेकर उससे तेल को हिलाते हुए इकतीस बार मन्त्रोच्चारण करें। जब तेल पीला हो जाय तो कटोरी को रोगी के सिर से नीचे उतार लें। तीन दिन तक यह प्रयोग करने से पीलिया रोग नष्ट हो जाता है। रोग ठीक हो जाने पर रोगी से हनुमानजी को प्रसाद चढ़वायें और गायों को घास व पक्षियों को अनाज डलवायें।
घाव पीड़ा- स्तम्भन मंत्र
मंत्र : ॐ नमो आदेश कामाख्या देवी का। काली बैठी लिये कटारी। जिसे देख
दुष्ट भयकारी। कटारी गुण तोरे बलिहारी जाई। कटारी के बन्धन के घाव
सुखाई। अमुक की पीड़ा। मां काली के वरदान से न रहे। बिहड़ वन बस
लुकान। आज्ञाहारी दासी चण्डी की दुहाई।
विधि : रात्रि के समय एकांत स्थल पर इस मन्त्र का जप करना चाहिए। ध्यान मां कामाख्या देवी का लगातार प्रतिदिन 108 बार मन्त्र का जप करना चाहिए। 84 दिनों तक जप के बाद मन्त्र सिद्ध हो जाता हैं। यदि किसी व्यक्ति अथवा स्त्री के शरीर पर किसी चीज से घाव हो जाय या कट-फट जाय और खून का रिसाव होने लगे तो साधक के द्वारा किसी कटोरी में जल लेकर उपरोक्त मन्त्र का 21 बार जप करके जल को शक्तिकृत करके रोगी के कटे स्थान या घाव पर लगाने से खून का बहना बंद हो जायेगा तथा पिला देने से उसकी पीड़ा की समाप्ति हो जायेगी।