ब्रह्मचर्य एक संस्कृत शब्द है, जो “ब्रह्म” (ईश्वर) और “चर्य” (आचरण या नियम) से मिलकर बना है। जिसे ब्रह्मचर्य कहते हैं ब्रह्मचर्य में एक नियम कर्तव्य बनाया गया है जिस पर व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरुष दोनों को इस नियम के अनुसार चलना होता है यही ब्रह्मचर्य कहलाता है उदाहरण से समझते हैं
ब्रह्मचर्य के नियम :
गुरु आज्ञा दें, तब उनके सामने बैठे। गुरुकी बातका श्रवण और गुरुके साथ वार्तालाप ये दोनों कार्य लेटे-लेटे न करे और भोजन करते समय भी न करे। उस समय न तो खड़ा रहे और न दूसरी ओर मुख ही फेरे। गुरुके समीप शिष्यकी शय्या और आसन सदा नीचे रहने आकर अत्रकी गर्हणा न करे। उसे देखकर हर्ष प्रकट करे। मनमें प्रसन्न हो और सब प्रकारसे उसका अभिनन्दन करे। अधिक भोजन आरोग्य, आयु और स्वर्गलोककी प्राप्तिमें हानि पहुँचानेवाला है;
वह पुण्यका नाशक और लोक-निन्दित है। इसलिये उसका परित्याग कर देना चाहिये। पूर्वाभिमुख होकर अथवा सूर्यकी ओर मुँह करके अत्रका भोजन करना उचित है। उत्तराभिमुख होकर कदापि भोजन न करे। यह भोजनकी सनातन विधि है। भोजन करनेवाला पुरुष हाथ-पैर धो, शुद्ध स्थानमें बैठकर पहले जलसे आचमन करे, फिर भोजनके पश्चात् भी उसे दो बार आचमन करना चाहिये। भोजन करके, जल पीकर, सोकर उठनेपर और स्नान करनेपर,
गलियोंमें घूमनेपर, ओठ चाटने या स्पर्श करनेपर, वस्त्र पहननेपर, वीर्य, मूत्र और मलका त्याग करनेपर, अनुचित बात कहनेपर, थूकनेपर, अध्ययन आरम्भ करनेके समय, खाँसी तथा दम उठनेपर, चौराहे या श्मशानभूमिमें घूमकर लौटनेपर तथा दोनों संघाओंके समय श्रेष्ठ द्विज आचमन किये होनेपर भी *कर आचमन करे। चाण्डालों और म्लेच्छोंके साथ बात कर पर, स्लियों, शूद्रों तथा जूठे मुँहवाले पुरुषोंसे वार्तालाप होनेपर, जूठे मुँहवाले पुरुष अथवा जूठे भोजनको देख लेनेपर तथा आँसू या रक्त गिरनेपर भी (आचमन हाथ पैर धोना) करना चाहिये।
अपने शरीरसे स्त्रियोंका स्पर्श हो जानेपर, अपने बालों तथा खिसककर गिरे हुए वस्त्रका स्पर्श कर लेनेपर धर्मकी दृष्टिसे आचमन करना उचित है। आचमनके लिये जल ऐसा होना चाहिये, जो गर्म न हो, जिसमें फेन न हो तथा जो खारा न हो। पवित्रताकी इच्छा रखनेवाला पुरुष सर्वदा पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बैठकर ही आचमन करे। उस समय सिर अथवा गलेको ढके रहे तथा बाल और चोटीको खुला रखे। कहींसे आया हुआ पुरुष दोनों पैरोंको धोये बिना पवित्र नहीं होता। विद्वान् पुरुष सीढ़ीपर या जलमें खड़ा होकर अथवा पगड़ी वधि आचमन न करे। वरसती हुई धाराके जलसे अथवा खड़ा होकर या हाथसे उलीचे हुए जलके द्वारा आचमन करना उचित नहीं है।
यह नियम ब्रह्मचर्य कहलाता है यह नियम स्कंद पुराण का है आपको हम समझाने के लिए यह नियम दिखा रहे हैं अगर ब्रह्मचर्य का आपको पूरा नियम पढ़ना है तो बुक से ब्रह्मचर्य का आप नियम पढ़ सकते हैं जो नियम आपने ऊपर पड़ा है इसी नियम के अनुसार अपना जीवन जीना ब्रह्मचर्य कहलाता है
ब्रह्मचर्य के प्रमुख लाभ जानकर तुम हैरान हो जाओगे
अर्थात शास्त्रों पुराणों में बताए गए नियमों पर चलना ब्रह्मचर्य कहलाता है
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ध्यान देने वाली बाते:
जो नियम शास्त्रों पुराणों में बताए गए हैं उसी नियम का पालन स्वयं भगवान राम भगवान श्री कृष्णा और समस्त देवी देवता ऋषि मुनि सभी लोग उसी नियम का पालन करते हैं इसी नियम का पालन करना ब्रह्मचर्य कहलाता है
आपने सुना होगा कि भगवान श्री कृष्णा पूरे संसार के सबसे बड़े ब्रह्मचारी कहलाते हैं जबकि वह शादी विवाह उन्होंने किया बच्चे पैदा किया तब भी उन्हें संसार का सबसे बड़ा ब्रह्मचारी कहा जाता है क्योंकि गृहस्थ में होते हुए भी ब्रह्मचर्य का पालन किया जा सकता है और भगवान श्री कृष्णा गृहस्थ में होती हुई भी इस नियम का पालन करते हैं जिसके कारण वह दुनिया के सबसे बड़े ब्रह्मचारी कहलाते हैं इसका यही कारण है जो व्यक्ति शास्त्रों के अनुसार बताए गए नियमों पर चलता है चाहे वह बैरागी हो या गृहस्थ में हो और वह उसे नियम पर चलता है तब उसे ब्रह्मचारी ही कहा जाएगा।