घर में प्रेत बाधा की समस्या हर घर में होती ही होती है चाहे कोई भी हो कुछ ऐसे घर होते है जहां ब्राह्मण या जहां सफाई हो जहां घर के लोग धर्म पर रहते चलते हो और जहां भगवान का पूजा पाठ होता है

उन घरों को छोड़कर बाकी सभी घरों में प्रेत बाधा होती ही होती आज हम यही जाएंगे कि जिन घरों में प्रेत बाधा होती है उन घरों में क्या लक्षण देखने को मिलते है हम सभी प्रेत बाधा के लक्षण आज आप जानेंगे कि एक प्रेत आपके घर में और परिवार में रहकर क्या कर सकता है 


घर में प्रेत बाधा के 37 लक्षण संकेत


1. प्रेत ग्रस्त प्राणी को बड़े ही अद्भुत स्वप्न दिखाई देते हैं।


2. जब तीर्थ - स्नान की बुद्धि होती है, चित्त धर्म परायण हो जाता है और धार्मिक कृत्यों को करनेकी मनुष्य की प्रवृत्ति नही होती है तब प्रेत बाधा उपस्थित होती है एवं उन पुण्य कार्यों को नष्ट करने। के लिए चित्त-भंग कर देती है


3. कल्याणकारी कार्यों में पग पग पर बहुत-से विघ्न होते हैं। प्रेत बार-बार अकल्याणकारी मार्ग में प्रवृत्त होने के लिए प्रेरणा देते हैं। शुभ कर्मों।में प्रवृत्ति का उच्चाटन और क्रूरता यह सब प्रेत के द्वारा किया जाता लक्षण होते है।

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4. शरीर में महा भयंकर रोग की उत्पत्ति, बालकों की 2 पीड़ा तथा पत्नी का पीड़ित होना- ये सब प्रेत बाधा जनित - हैं।

प्रेत बाधा के लक्षण और संकेत। प्रेत बाधा दूर करने का उपाय


5.  वेद, स्मृति-पुराण एवं धर्म। शास्त्र के नियमों का गलन करने वाले परिवार में जन्म होने पर भी धर्म के प्रति प्राणी के अन्तःकरण में प्रेम का न होना प्रेत जनित बाधा ही है। 


6. जो मनुष्य प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप। से • देवता, तीर्थ और ब्राह्मण की निन्दा करता है, यह भी प्रेतोत्पन्न पीड़ा के लक्षण संकेत है।


7. अपनी जीविका का अपहरण, प्रतिष्ठा तथा वंश का विनाश भी प्रेत बाधा के अतिरिक्त अन्य प्रकार से सम्भव नहीं है। 


8. स्त्रियों का गर्भ विनष्ट हो जाता है, जिनमें रजोदर्शन नहीं होता और बालकों की मृत्यु हो जाती है, वहाँ प्रेत जन्य बाधा ही समझनी चाहिए।


 9. जो मनुष्य शुद्ध भाव से सांवत्सरा दिन श्राद्ध नहीं करता है, वह भी प्रेत बाधा लक्षण है। 


10. तीर्थ में जाकर दूसरे में आसक्त हुआ प्राणी जब अपने सत्कर्म का परित्याग कर दे तथा धर्म कार्य में स्वार्जित धन का उपयोग न करे तो उसको भी प्रेत जन्य पीड़ा ही समझना चाहिए। 


11. भोजन करने के समय कोप युक्त जिन लोगों में सदैव उच्चाटन के अत्यधिक चिह्न दिखाई देते हैं, अपने क्षेत्र में उसका तेज निष्फल हो जाता है तो उसे प्रेत जनित बाधा ही माननी चाहिए।


 12. जो व्यक्ति सगोत्री का विनाशक है, जो अपने ही पुत्र को शत्रु के समान मार डालता है, जिसके अन्तःकरण में प्रेम और सुख की अनुभूतियों का अभाव रहता है, वह दोष उस प्राणी में प्रेतबाधा के कारण होता है


13. पिता के आदेश की अवहेलना, अपनी पत्नी के साथ रहकर भी सुख भोग न कर पाना, व्यग्रता और क्रूर बुद्धि भी प्रेत जन्य बाधा के कारण होती है 


 14. निषिद्ध कर्म, दुष्ट-संसर्ग तथा वृषोत्सर्ग कि न होने और अविधिपूर्वक की गई औध्वदैहिक क्रिया से प्रेत होता है


15. अकाल मृत्यु या दाह - संस्कार से वञ्चित होने पर प्रेत योनि प्राप्त होती है, जिससे प्राणी को दुःख झेलना पड़ता है। ऐसा जानकर मनुष्य प्रेत-मुक्ति का आचरण करे। 


16. जो व्यक्ति प्रेत योनियों को नहीं मानता है, वह स्वयं प्रेत योनि को प्राप्त होता है।


17. जिसके वंश में प्रेत-दोष रहता है, उसके लिए इस संसार में सुख नहीं है। 


18. प्रेतबाधा होने पर मनुष्य की मति, प्रीति, रति, लक्ष्मी और बुद्धि-इन पाँचों का विनाश होता है। 


19. तीसरी या पाँचवीं पीढ़ी में प्रेत बाधा ग्रस्त कुल का विनाश हो जाता है। ऐसे वंश का प्राणी जन्म - जन्मान्तर दरिद्र, निर्धन और पाप कर्म में अनुरक्त रहता है। 


20. विकृत मुख तथा नेत्र वाले, क्रुद्ध स्वभाव वाले, अपने गोत्र, पुत्र- पुत्री, पिता, भाई, भौजाई अथवा बहू को नहीं माननेवाले लोग भी विधि वश प्रेत-शरीर धारण कर सद्गति से रहित हो 'बड़ा कष्ट झेलते है',देवता और ब्राह्मणों की निन्दा करता है, उसे हत्या का दोष लगता है। यह पीड़ा प्रेत से पैदा होती है। 


21. नित्य कर्म से दूर, जप-होम से रहित और पराए धन का अपहरण करनेवाला मनुष्य दुःखी रहता है, इन दुःखों का कारण भी प्रेतबाधा ही है।


22. अच्छी वर्षा होने पर भी कृषि का नाश होता है, व्यवहार नष्ट हो जाता है, समाज में कलह उत्पन्न होता है, ये सभी कष्ट प्रेतबाधा से ही होते हैं।


23. मार्ग में चलते हुए पथिक को जो बवंडर से पीड़ा होती है, उसको भी तुम्हें प्रेतबाधा समझना चाहिए। 


24. प्राणी जो नीच जाति से सम्बन्ध रखता है, हीन कर्म करता है और अधर्म में नित्य अनुरक्त रहता है, वह प्रेत से उत्पन्न पीड़ा है।


 25. व्यसनों से द्रव्य का नाश हो जाता है, प्राप्तव्य का विनाश हो जाता है। 


26. जो व्यक्ति स्वप्न में प्रेत-दर्शन, भाषण, चेष्टा और पीड़ा आदि को देखकर भी श्राद्ध दि द्वारा उनकी मुक्तिका उपाय नहीं करता, वह प्रेतों के द्वारा दिए गए शाप। से संलिप्त होता है।




27. ऐसा व्यक्ति जन्म - जन्मान्तर तक निःसन्तान, पशु हीन, दरिद्र, रोगी, जीविका के साधन से रहित और निम्न कुल में उत्पन्न होता है। ऐसा वे प्रेत कहते हैं और पुनः यमलोक जाकर पाप कर्मों का भोग द्वारा नाश हो आने के अनन्तर अपने समय से प्रेत की मुक्ति हो जाती है। गरुड पुराण ।।


28. वे प्रेत चोर के समान उस महापथ के लिए पितृभाग में दिये गए जल का अपहरण करते हैं। तदनन्तर पुनः अपने घर में आकर वे मित्र के रूप में प्रविष्ट हो जाते हैं और वहीं पर रहते हुए स्वयं रोग-शोक आदि की पीड़ा से ग्रसित होकर सब कुछ देखते रहते हैं। वे एक दिन का अन्तराल देकर आनेवाले ज्वर (बुखार) का रूप धारण करके अपने सम्बन्धियों को पीड़ा पहुँचाते हैं


29. अथवा तिजरिया ज्वर बनकर और शीत वातादि से उन्हें कष्ट देते हैं। उच्छिष्ट अर्थात् जूठे अपवित्र स्थानों में निवास करते हुए उन प्रेतों के द्वारा सदैव अभि लक्षित प्राणियों को कष्ट देने के लिए शिरो वेदना, विपूचि का तथा नाना प्रकार के अन्य बहुत-से रोगों का रूप धारण कर लिया जाता है। इस प्रकार वे दुष्कर्मी प्रेत नाना दोषों में प्रवृत्त होते हैं।


30. प्रेत होकर प्राणी अपने ही कुल को पीड़ित करता है, वह दूसरे कुल के व्यक्ति को तो कोई आपराधिक छिद्र प्राप्त होने पर ही पीड़ा देता है। जीते हुए तो वह प्रेमी की तरह दिखायी देता है, किंतु मृत्यु होने पर वही दुष्ट बन जाता है। जो भगवान् श्रीरुद्रके मन्त्र का जप करता है, धर्म में अनुरक्त रहता है, देवता और अतिथि की पूजा करता है, 


31. सत्य तथा प्रिय बोलने वाला है, उसको प्रेत पीड़ा नहीं दे पाते हैं। जो व्यक्ति सभी प्रकार की धार्मिक क्रियाओं से परि भ्रष्ट हो गया है, नास्तिक है, धर्म की निन्दा करनेवाला है और सदैव असत्य बोलता है, उसी। को प्रेत कष्ट पहुँचाते हैं। कलि काल में अपवित्र क्रिया ओंको करनेवाला प्राणी प्रेत। योनि को प्राप्त होता है। 


32. इस संसार में उत्पन्न एक ही माता-पिता से पैदा हुए बहुत-से संतानों में एक सुख का उपभोग करता है, एक पाप कर्म में अनुरक्त रहता है, एक संतान वान् होता है, एक प्रेत से पीड़ित रहता है और एक पुत्र धनधान्य से सम्पन्न रहता है,


33. एक का पुत्र मर जाता है, एक के मात्र पुत्रियां ही होती हैं। प्रेत दोष के कारण बन्धु- बान्धवों के साथ विरोध होता है। प्रेत योनि के प्रभाव से मनुष्य को संतान नहीं होती यह भी भूत प्रेत बाधा के लक्षण संकेत है। 


34. यदि संतान उत्पन्न भी होती है तो वह मर जाती है। प्रेतबाधा के कारण तो व्यक्ति पशु हीन और धनहीन हो जाता है। उसके कुप्रभाव से उसकी प्रकृति में परिवर्तन आ जाता है, वह अपने बन्धु-बान्धवों से शत्रुता रखने लगता है। 


35. अचानक प्राणी को जो दुःख प्राप्त होता है, वह प्रेत बाधा के कारण होता है। नास्तिकता, जीवन- वृत्ति की समाप्ति, अत्यन्त लोभ तथा प्रतिदिन होनेवाले कलह-यह प्रेत से पैदा होनेवाली पीड़ा है। जो पुरुष माता- पिता की हत्या करता है, जो पति- पत्नी के बीच कलह, दूसरों से शत्रुता रखनेवाली बुद्धि-यह सब प्रेत- सम्भूत पीड़ा है।


36. जहाँ पुष्प और फल नहीं दिखायी देते तथा पत्नी का विरह होता है, वहाँ भी प्रेतोत्पन्न पीड़ा लक्षण संकेत है। यह सभी प्रेत बाधा के लक्षण संकेत आपके घर में होते हैं तो आप समझ लें कि आपके घर में प्रेत बाधा आवश्यक है यह तो घर के भूत प्रेत होते हैं तब यह लक्षण दिखाई देते हैं


37.  जब कोई बाहरी तांत्रिक या ओझा आपके ऊपर या आपके  परिवार या घर में कर देता है तो कुछ इस प्रकार के लक्षण देखे जाते है अचानक तबियत बिगड़ जाती बिना कारण ,बुखार शरीर में दर्द उठ जाता है , दिमाग में चिंता छाने लगती है सिर भारी लगने लगता है।